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अध्याय १० : २०५
मौन धर्म की समुपासना का फल है-स्थूल और सूक्ष्म शरीर से मुक्त होना। सूक्ष्म शरीर का जब अन्त हो जाता है, तब भवचक्र रुक जाता है। समस्त सत् और असत् इच्छाओं से सर्वथा आत्मा विलग हो जाती है। इच्छाओं का अन्त ही जन्म का अन्त है।
'सत्य मौन में घटित होता है'--यह समस्त ऋषियों का अनुभूत स्वर है, और यह भी अनुभूत वाणी है कि सत्यवान् व्यक्ति मौन को उपलब्ध हो जाता है। इस दृष्टि से मौन और सत्य दोनों परस्पराश्रित हैं। एक दूसरे के अभिन्न मित्र हैं। सम्यक् का अर्थ है- सत्य । सत्य यानि अस्तित्व की अनुभूति का ज्ञान । आचार्य पूज्यपाद ने लिखा है-'साधक बाह्य वचन-व्यवसाय का विसर्जन कर अन्तरंग में होने वाले वाक्-प्रपंच का भी विसर्जन करे। परमात्म-प्रदीप को प्रकट करने की यह संक्षिप्त योग विधि है।' वाक्जाल से मुक्त होना साधक के लिए अत्यन्त अपेक्षित है। अन्यथा उसका समन शक्ति-प्रवाह व्यर्थ अन्तर्वाणी और बाह्यवाणी के व्यापार में व्यय हो जाता है। मौन केवल शारीरिक तनाव की मुक्ति के लिए नहीं है, यह उसका क्षुद्रतम उपयोग है। उसकी वास्तविक उपादेयता है-चैतन्य का साक्षात्कार। जहां स्पंदन शान्त हो जाते हैं, उस क्षण में हम स्वयं के भीतर होते हैं। मौन उसी चैतन्य की अनुभूति के लिए है। उसके अनेक भेद हैं। अन्तमौन तक पहुंचने की ये प्राथमिक सीढ़ियां हैं । यथार्थ मौन वही है जहां साधक की अन्तर्वाणी मुखरित हो जाती है और बाह्य सर्वथा शान्त । मौन के क्षणों में फिर सत्य-अस्तित्व बोलता है, वह नहीं। उसका अपना 'मैं' 'अहं' मिट जाता है। वह उसी परम सत्य की एक कड़ी बन जाता है। मौन-साधकों के लिए अन्तमौन का अभ्यास उपादेय है। अन्यथा जहां उन्हें पहुंचना है वहां पहुंच पाना असम्भव
अन्तमौन का अर्थ है-विचार-नियमन तथा विचार-शून्यता। विचारों के निग्रह के लिए आपको विचारों के प्रति जागरूक या साक्षी होना होगा। जैसे-जैसे जागरण बढ़ेगा, विचारों का सिलसिला टूटता चला जाएगा। एक विचार से दूसरे विचार के उत्पन्न होने के मध्य दूरी का अनुभव होगा और इसी से शनैः-शनैः आप शून्य में प्रवेश कर जाएंगे। विचार-नियमन का इससे अधिक सरल और कारगर उपाय नहीं है। यह स्पष्ट है कि विचारों का नियंत्रण दुरूह है, किन्तु साधक के आत्म-बल, दृढ़ भावना, श्रद्धा और सतत अभ्यास के समक्ष उसकी दुरूहता स्वयं सरलता में परिणत होती चली जाती है। साधक केवल जो जैसा आता है उसे उसी रूप में शान्त-समभाव से देखता रहे, न विचारों को लाने का प्रयास करे और न उन्हें हटाने का। बस, वह तो उनके प्रति जागृत रहे।
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