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________________ अध्याय १० : १६६ विनीतः सरलात्मा च, अल्पारम्भपरिग्रहः । सानुक्रोशोऽमत्सरी च, जनो याति मनुष्यताम् ॥२६॥ २६. जो विनीत व सरल होता है, अल्प-आरम्भ व अल्प-परिग्रह वाला होता है, दयालु और मात्सर्य रहित होता है, वह मृत्यु के बाद मनुष्य-जन्म को प्राप्त होता है । मायाञ्च निकृति कृत्वा, कृत्वा चासत्यभाषणम् । कूटं तोलं च मानञ्च, जीवस्तिर्यगति व्रजेत् ॥३०॥ ३०. तिर्यञ्च (पशु-पक्षी) की गति में उत्पन्न होने के चार कारण हैं : (१) कपट, (२) प्रवंचना, (३)असत्य-भाषण और (४) कूटतोल-माप। २७-३०. इन चार श्लोकों में नरक, स्वर्ग, मनुष्य और तिर्यञ्च-इन चार गतियों की प्राप्ति के चार-चार कारण निर्दिष्ट हैं। इनके अध्ययन से यह सहज पता लग सकता है कि किस अध्यवसाय वाले प्राणी किस योनि में जाते हैं। कर्म का फल अवश्य होता है-यह जैन दर्शन का ध्र व तथ्य है। अपने-अपने कर्मों के अनुसार व्यक्ति जन्म-मरण करता है। उपर्युक्त निर्दिष्ट कारण एक संकेत मात्र हैं। वे तथा उन जैसे अनेक कारणों के संयोग से व्यक्ति को वे-वे योनियां प्राप्त होती हैं। केवल ये ही कारण नियामक नहीं हैं । नरक जाने का एक हेतु मांसाहार है किन्तु मांस खाने वाले सभी व्यक्ति नरक में ही जाते हों, ऐसी नियामकता नहीं है। यह तथ्य अवश्य है कि मांसाहार व्यक्ति में क्रूरता पैदा करता है और उससे कर्म-परंपरा तीव्र होती चली जाती है। अतः इन कारणों के आलोक में हमें यह स्पष्ट जान लेना चाहिए कि गति की प्राप्ति में किन-किन अध्यवसायों या प्रवृत्तियों का क्या-क्या परिणाम होता है। शुभाशुभाभ्यां कर्मभ्यां, संसारमनुवर्तते। प्रमादबहुलो जीवोऽप्रमादेनान्तमृच्छति ॥३१॥ ३१. प्रमादी जीव शुभ और अशुभ कर्मों के द्वारा संसार में अनुवर्तन करता है और अप्रमादी जीव संसार का अन्त कर देता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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