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(चौबीस)
३४. उपदेश देने वाले और न देने वाले साधक । ३५. मुक्ति के हेतु - लिंग या वेश नहीं । ३६. मुनिवेश को धारण करने के तीन कारण । ३७. मोक्ष के साधक तत्त्व ।
३८. जिज्ञासा : ज्ञान संवर्धन का द्वार ।
३६. साधकों की तीन श्रेणियां । ४०. मौन ( श्रामण्य) क्या है ?
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पश्यत्ता (श्लोक ४६ )
१. आत्मा का कर्त्तत्व और भोक्तृत्त्व ।
२. संसार क्या है ?
३. जीव विभिन्न योनियों में क्यों ?
अध्याय
४-८. चार दुर्लभ चीजों की प्राप्ति और परिणाम ।
६. सरल ही विशुद्ध हो सकता है ।
१०. विशद विचारणा की प्राप्ति कब ?
११. दुःख - मुक्ति की जिज्ञासा से मार्ग की प्राप्ति । १२. सूक्ष्म सत्य का अधिकारी कौन ?
१३-१४. सत्यद्रष्टा का चिन्तन ।
१५. परिग्रह - मुक्ति से शान्ति । १६-१८. ज्ञानवाद त्राण नहीं होता । १६. मोक्षमार्ग का दर्शन । २०-२२. दुःख - मुक्ति का क्रम ।
२३. संवृतात्मा अकर्मी होता है । २४. दर्शनावरणीय कर्म के अन्त की फलश्रुति । २५. ज्ञान का विकास पूर्ण विश्वास से संभव । २६-२७. मैत्री भावना ।
२८. मनुष्यों का नेत्र कौन ?
२९-३१. सम्बोधि का स्वरूप और उसकी दुर्लभता ।
३२. शल्य दुःख है ।
३३. पंडित कौन ?
३४. एकत्व भावना ।
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