________________
अध्याय ८ : १६६
२६. पहले जो मेरे मन में कलुष भाव आया, उसकी शुद्धि के लिए मैं प्रायश्चित्त करना चाहता हूं और चित्त की समाधि के लिए आपसे पुन: धर्म देशना सुनना चाहता हूं ।
उपसंहार
मेघकुमार का मन श्रामण्य के पहले ही दिन कुछेक तात्कालिक कारणों से - स्थिर हो गया । वह घर जाने के लिए तत्पर होकर भगवान् महावीर के पास आया और अपनी सारी भावना उनके सामने रखी। भगवान् महावीर ने उसके मानस को पढ़ा, उतार-चढ़ाव पर ध्यान दिया और उसे श्रामण्य में पुनः प्रतिष्ठापित करने के लिए प्रतिबोध दिया ।
भगवान् की वाणी सुन मेघकुमार का आत्म- चैतन्य जगमगा उठा । उसने -दुःख, दुःख हेतु, मोक्ष और मोक्ष हेतु - इन चारों तत्त्वों को सम्यक् जान लिया और पुनः श्रामण्य में स्थिर हो गया ।
अब उसकी आत्मा इतनी जागृत हो चुकी थी कि उसने अपने पूर्वकृत मनोमालिन्य की शुद्धि के लिए भगवान् से प्रायश्चित्त की याचना की । वह जान गया fa प्रायश्चित्त की आग में जले बिना सोना कंचन नहीं होता । उसने प्रायश्चित्त लिया और वह भगवान् के शासन में पुनः सम्मिलित हो गया ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org