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________________ १६८ : सम्बोधि महात्मा बुद्ध के चार आर्य-सत्य हैं-दुःख, दुःख-समुदाय, दुःख-निरोध और दुःख-निरोध का उपाय । दुःख-समुदाय में भगवान् बुद्ध ने द्वादश निदान बताये हैं। द्वादश निदान का निरोध दुःख-निरोध है। भगवान महावीर की दृष्टि में राग और द्वेष का निरोध ही दुःख का अवसान है। दुःख निरोध का उपाय भगवान् बुद्ध की दृष्टि में अष्टांगिक मार्ग है और भगवान् महावीर की दृष्टि में रत्नत्रयी है। बुद्ध कहते हैं-चार आर्य-सत्यों के ज्ञान से निर्वाण होता है। भगवान् महावीर कहते हैं- रत्नत्रयी के ज्ञान और अनुसरण से मुक्ति होती है। मेघः प्राह भद्रं भद्रं तीर्थनाथ ! तीर्थे नीतोऽस्म्यहं त्वया। भावितात्मा स्थितात्मा च, त्वया जातोऽस्मि सम्प्रति ॥२७॥ २७. मेघ बोला-हे तीर्थनाथ ! अच्छा हुआ, बहुत अच्छा हुआ। आपके प्रसाद से मैं तीर्थ में आ गया हूं और आपके अनुग्रह से मैं अब भावितात्मा (संयम से सुवासित आत्मा वाला) और स्थितात्मा हो गया हूं। __मोह का निरसन मोह से नहीं होता। अज्ञान का अन्धकार ज्ञान की ज्योति के सामने क्षीण हो जाता है। खून से सना वस्त्र खून से शुद्ध नहीं होता। ममत्व का आवरण निर्ममत्व से हटता है । बन्ध से बन्ध का क्षय नहीं होता। भगवान् महावीर से दुःख, दुःख-मुक्ति का उपाय, बन्ध, मोक्ष, अहिंसा आदि का विशद विवेचन सुन मेघ की निमीलित आंखें खुल गयीं। वह सचेतन हो गया। मोह का आवरण हटने लगा। ज्ञान के प्रकाश के सामने तम नष्ट हो गया। मेघ के लड़खड़ाते पैर पुनः स्थिर हो गए। उसने अपने हृदय की गांठ भगवान् के सामने खोल दी। नष्टो मोहो गतं क्लैव्यं, शुद्धा बुद्धिः स्थिरं मनः । पुनर्मोनं तथाभ्यणे, स्वीचिकीर्षामि साम्प्रतम् ॥२८॥ २८. अब मेरा मोह नष्ट हो गया है, क्लैव्य चला गया है, बुद्धि शुद्ध हो गयी है और मन स्थिर बन गया है। अब मैं पुन. आपके पास श्रामण्य स्वीकार करना चाहता हूं। प्रायश्चित्तञ्च वाञ्छामि, पूर्वमालिन्यशुद्धये । चेतःसमाधये भूयः कामये धर्मदेशनाम् ॥२६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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