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________________ (बीस) १८. 'पर' का संरक्षण अहिंसा से नहीं । १६. अहिंसा की परिभाषा । २०-२१. धर्म के प्रकारों का निरूपण । २२. दुष्प्रवृति और सत्प्रवृति का स्वरूप । २३. सत्य आदि अहिंसा धर्म के उपजीवी । २४. अवैराग्य और मोह एक हैं । २५. विषयों के सेवन का आदि-बिन्दु । २६. मोह की व्यूह रचना | २७. भोग और योग का मूल क्या है ? २८-२६. वैराग्य के अनुपम लाभ । ३०. परम आत्मा की उपलब्धि कब ? ३१. वीतराग भावना की फलश्रुति । ३२-३४. आत्मोपलब्धि की प्रक्रिया | ३५-३६. ग्रन्थिभेद की प्रक्रिया और उसकी परम उपलब्धि ३७. मुनि धर्म का अधिकारी । ३५-३६. शाश्वत की उपासना । ६ उद्बोधन (श्लोक २६ ) १. विभिन्न रुचियों का प्रतिफलन । २- ३. अनात्मदर्शी की शंका और मान्यता । ४७. अनात्मवादी क्या प्राप्त करते हैं ? ८-१०. आत्मवादी गृहस्थ की धर्मोन्मुखता का प्रतिपादन | ११-१६. संयम की श्रेष्ठता और उसका प्रतिफलन । अध्याय १७. श्रामण्य का फल । १८- २०. लाभ और हानि का विवेकः । २१ - २३. गृहवास में संयम पालन से होने वाली उपलब्धि की इयत्ता ।" २४. गृहवास अन्ततो त्याज्य है । २५. प्रमाद कर्म है, अप्रमाद अकर्म । २६. शक्ति के प्रवाह के तीन मार्ग Jain Education International ११६-१३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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