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________________ अध्याय ६ : १२७ रहते हुए भी सुव्रती हैं (सदाचार का पालन करते हैं), वे मनुष्य योनि को प्राप्त होते हैं, क्योंकि प्राणी कर्म-सत्य होते हैं—जैसे कर्म करते हैं वैसे ही फल को प्राप्त होते हैं। येषां तु विपुला शिक्षा, ते च मूलमतिसृताः। सकर्माणो दिवं यान्ति, सिद्धि यान्त्यरजोमलाः ॥२२॥ २२. जिनके पास विपुल ज्ञानात्मक और क्रियात्मक शिक्षा है, वे मूल पूंजी की वृद्धि करते हैं । वे कर्मयुक्त हों तो स्वर्ग को प्राप्त होते हैं और जब उनके रज और मल का (बन्धन और बन्धन के हेतु का) नाश हो जाता है तो वे मुक्त हो जाते हैं । अगारमावसंल्लोकः, सर्वप्राणेषु संयतः। समतां सुव्रतो गच्छन्, स्वर्ग गच्छति नामृतम् ॥२३॥ २३. घर में निवास करने वाला व्यक्ति सब प्राणियों की स्थूल रूप से यतना करता है, जो सुव्रत है और समभाव की आराधना करता है वह स्वर्ग को प्राप्त होता है; किन्तु हिंसा और परिग्रह के बन्धन से सर्वथा मक्त न होने के कारण वह मोक्ष को नहीं पा सकता। जीवों की विविध योनियां है। उसमें मानव-जीवन सर्वश्रेष्ठ है। समस्त अध्यास्मद्रण्टा संतों ने एक स्वर से इस सत्य को स्वीकार किया है। मानवीय जीवन से नीचे स्तर के प्राणियों में विवेक की मात्रा इतनी विकसित नहीं है जितनी कि मनुष्य में। मनुष्य-जीवन द्वार है जिससे आप नीचे और ऊपर दोनों तरफ गति कर सकते हैं । नीचे ओर ऊपर जाने का स्वातन्त्र्य भी उसके हाथ में है। निर्णय यह करना है कि जाना कहा है ? अनेक व्यक्ति जीवन की परिसमाप्ति तक निर्णय नहीं कर पाते। ये सरिता के प्रवाह में लुढकते हुए पत्थरों की तरह हैं। कर्म के प्रवाह में प्रवाहित होते हुए आए और वैसे ही चले गए। किन्तु जीवन उन्ही के लिए हैं जो ऊपर उठने का निर्णय लेते हैं और उस दिशा में अनवरत गतिशील रहते हैं। ___मूल स्थिति मनुष्य जीवन है। मानव देह से पुनः मानव देह धारण करना, यह भी इतना सहज नहीं है। इसका सौभाग्य भी किसी-किसी को उपलब्ध होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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