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________________ अध्याय ३ : ६३ के द्वारा इन दोषों को उखाड़कर मैत्री, प्रमोद, सरलता, सद्भावना, अनाशंसा, विनम्रता, निर्ममत्व, आकिंचन्य आदि गुणों को स्थान देना सिद्धि की ओर अग्रसर होना है। मन को पवित्र करने का यही अर्थ है। चेतना सतत प्रवहमान है। जो चेतना बाहर जाती है, उसका प्रवाहात्मक अस्तित्व मन है। शरीर का अस्तित्व जैसे निरन्तर है, वैसे मन का अस्तित्व निरंतर नहीं रहता। मन केवल मनन-काल में होता है। वास्तव में मानसिक समता ही मनः शुद्धि है । सामान्यतः यह लोक-भाषा है कि मन चंचल है, उसमें विक्षेप होता है। परन्तु यह तब तक होता है जब तक कि मन का इन्द्रियों के साथ गाढ़ संपर्क होता है। जब मन इनसे संबंध-विच्छेद कर आत्माभिमुख होता है, तब वह चंचल नहीं होता, धीरे-धीरे एकाग्र बन जाता है । जिस व्यक्ति की चेतना का प्रवाह बाह्याभिमुख है, वह ध्यान नहीं कर सकता। जो अपनी चेतना को आत्माभिमुख करता है, वही ध्यान का अधिकारी होता है । मनः शुद्धि: और मनः एकाग्रता से आत्मा निर्वाण को प्राप्त करती है। नेदं चित्तं समादाय, भूयो लोके स जायते । संजिज्ञानेन जानाति, विशुद्धं स्थानमात्मनः ॥३०॥ ३०. निर्मल चित्तवाला व्यक्ति बार-बार संसार में जन्म नहीं लेता । वह जाति-स्मृति के द्वारा आत्मा के विशुद्ध स्थान को जानता भगवान् महावीर ने कहा- 'धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ'-धर्म मानसिक विशुद्धि में निवास करता है । शुद्धि उसकी होती है जो सरल है। सरलता का अर्थ है-- कथनी और करनी की समानता। 'सरलता वह प्रकाश-पुंज है, जिसे हम चारों ओर से देख सकते हैं।' सरलता चित्तशुद्धि का अनन्य उपाय है। जब तक मन पर अज्ञान, संदेह, माया और स्वार्थ का आवरण रहता है तब तक वह सरल नहीं होता। इन दोषों को दूर करने पर ही व्यक्ति का मन खुली पोथी जैसा हो सकता है, चाहे कोई भी व्यक्ति किसी भी समय में उसके मन को पढ़ सकता है। जब तक मन में छिपाव, घुमाव और अन्धकार रहते हैं, तब तक मन की सरलता प्राप्त नहीं होती। असरल मन सदा मलिन रहता है । मलिन मन से विचार और आचार भी मलिन हो जाते हैं। अतः चित्त की निर्मलता से आत्म-स्वरूप का सहज परिज्ञान हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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