SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्यावरण था - अनन्तकाल से परिभ्रमण करते हुए इस जीव ने कितने माँ-बाप बनाए हैं । जिनकी हिंसा की जा रही है, उसमें न जाने कितने पुराने पुरखे अपने हैं। ऐसी बातें कहकर पानी का घी की तरह उपयोग करने का रहस्य समझाया जाता । रूपचन्दजी सेठिया जैसे व्यक्ति पच्चीस तोला से अधिक पानी स्नान में काम नहीं लेते थे । पुरानी पीढ़ी के लोग एक-आध बाल्टी में स्नान कर लेते थे। आजकल ऐसा करना समझदारी की बात नहीं मानी जाती। जब तक व्यक्ति नल के नीचे न बैठ जाए, दस-बीस बाल्टियां शरीर पर न दुल जाएं तब तक अच्छा स्नान नहीं होता । 1 87 आज असंयम कितना बढ़ गया है। हर बात में असंयम है। बिजली का कितना अनावश्यक उपयोग हो रहा है। बत्ती जला देते हैं और वह सारी रात जलती रहती है। क्या सारी रात बत्ती का प्रकाश जरूरी है? पंखा चलाते हैं और दिन-रात पंखा चलता रहता है । क्या यह असंयम नहीं है? बिजली जले तो दिन-रात जले और पानी बहे तो दिन-रात बहे | कितना प्रबल है असंयम । इस स्थिति में ओजोन की छतरी कैसे नहीं टूटेगी। कार्बन की मात्रा कैसे नहीं बढ़ेगी? ऑक्सीजन में कमी क्यों नहीं आएगी? पर्यावरण का सन्तुलन क्यों नहीं बिगड़ेगा ? हम इस सचाई को समझें। भगवान महावीर ने कहा- इस सचाई को जानकर मेधावी पुरुष यह संकल्प ले - मैंने हिंसा और असंयम बहुत किया । मैं वह अब नहीं करूंगा। मैं अब अहिंसा और संयम की साधना करूंगा । . जैसे-जैसे यह संकल्प बलवान बनता है, शक्तिशाली बनता है वैसे-वैसे व्यक्ति में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है । जैसे-जैसे संयम बढ़ेगा, असंयम कम होगा, कठिनाइयां भी कम होंगी । हम जितना संयम करेंगे, समस्या उतनी ही छोटी होती चली जाएगी। वह लम्बी नहीं बनेगी, भयंकर और विकराल नहीं होगी। यदि आज सचमुच विश्व को पर्यावरण सन्तुलन की चिन्ता है, उससे होने वाले परिणामों की चिन्ता है तो उसके लिए धर्म का पाठ, अहिंसा और संयम का पाठ समझना सबसे ज्यादा जरूरी है। संयम की बात केवल मोक्ष के सन्दर्भ में ही नहीं कहीं गई है, जीवन के सन्दर्भ में भी वह बहुत मूल्यवान है। इस सचाई को वर्तमान युग की समस्याओं के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया जाए, अधर्म और हिंसा से उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों और कठिनाइयों के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया जाए तो प्रत्येक व्यक्ति धर्म का मूल्यांकन करेगा, अहिंसा और संयम का मूल्यांकन करेगा, धर्म की बात बहुत व्यापक बन जाएगी। धर्म का एक सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy