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कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी ?
भूमि पर चलना एक समान लगेगा ।
भगवती सूत्र का यह वर्णन क्या परमाणु युद्ध से पैदा होने वाली स्थिति का वर्णन नहीं है? उन्होंने पहले कैसे देखा कि ऐसा कुछ होने वाला है? आज जो चल रहा है, उससे ऐसा लगता है-आदमी ठीक उसी दिशा में चल रहा है | आज का वैज्ञानिक और राजनेता हिंसा की दिशा में जा रहा है, इसका अर्थ है-मौत की दिशा में जा रहा है
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काल की उदीरणा न हो जाए
आज सारे वैज्ञानिक भविष्य के प्रति चिंतित हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन के लोग अनेक बार यह घोषणा करते हैं - वनों की कटाई कम करें, पदार्थ और जल का सीमित प्रयोग करें। वैज्ञानिक स्तर पर आने वाली इन चेतावनियों के बावजूद सब कुछ वैसा ही चल रहा है । सब लोग वैसे ही कर रहे हैं, सरकारें भी वैसे ही चलती जा रही हैं। पैसे का लोभ सरकार को भी है, जनता को भी है, ठेकेदारों और अधिकारियों को भी है । इस पैसे के चक्र में, लोभ और असंयम के चक्र में सब फँसे हुए हैं। पर्यावरण प्रदषूण के प्रति बहुत चिन्ता दर्शायी जा रही है, किन्तु इसकी क्रियान्विति की चिन्ता नहीं है। जब तक अहिंसा और संयम का मार्ग समझ में नहीं आएगा तब तक पर्यावरण की बात समझ में नहीं आएगी, पर्यावरण की समस्या सुलझेगी नहीं ।
पाँचवें कालखण्ड की काल अवधि है - इक्कीस हजार वर्ष । कहीं काल की उदीरणा न हो जाए, इक्कीस हजार वर्ष बाद आने वाली स्थिति इक्कीसवीं शताब्दी में ही न आ जाए? क्योंकि वैज्ञानिक उद्घोषणा है - इक्कीसवीं शताब्दी का मध्य दुनिया के लिए भयंकर होगा । उसमें केवल पचास वर्ष बच रहे हैं । जो पीढ़ी आज जन्म ले रही है, वह इस भयंकरता से गुजरेगी । यदि हम नहीं संभले तो सामने दिखने वाला खतरा भयंकर बन जाएगा । सम्भव है, काल की उदीरणा हो जाए। काल कर्म की उदीरणा में निमित्त बनता है तो हो सकता है, शायद कर्म भी कभी-कभी काल की उदीरणा में निमित्त
बन जाए । समाधान-सूत्र
इस समस्या के जो समाधान - सूत्र हैं, वे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। पुराने लोग कहा करते थे - जल को घी की तरह बरतो । यह अवधारणा थी- असंख्य जीव मरते हैं तो जल की एक बूँद काम आती है। जल की एक बूँद में असंख्य जीव होते हैं। धर्म का तत्त्व समझाते हुए बच्चों को कहा जाता था - देखो ! एक गिलास पानी में तुम्हारे न जाने कितने मां-बाप हैं। इसका मतलब होता
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