________________
72
कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी?
संसार इस धोखे की अनुभूति कर चुका है, कर रहा है और करता रहेगा। यह भौतिक व्यक्तित्व की प्रकृति है। इससे बचा नहीं जा सकता।
आध्यात्मिक व्यक्तित्व केवल यथार्थवादी दृष्टिकोण के आधार पर निर्मित होता है और भौतिकवादी व्यक्तित्व काल्पनिक रेखाओं के आधार पर निर्मित होता है। यह भ्रान्ति न रहे कि आध्यात्मिक व्यक्ति पदार्थ का उपभोग नहीं करता। वह पदार्थ का उपयोग और उपभोग करता है और वास्तव में वही पदार्थ का सही उपभोग करता है। भौतिकवादी पदार्थ का उपभोग कम करता है, दुःख का उपभोग अधिक करता है। वह प्रत्येक चीज के साथ दुःख को जोड़ देता है।
एक बहन ने कहा-ध्यान की साधना करने से पूर्व घर के प्रति अत्यन्त मोह था। अब वह क्षीण होता जा रहा है। उसकी सघनता मिट रही है। घर में रहती हूं, पर मोह नहीं है। छोड़ आती हूं तो कोई कष्ट नहीं होता।
एक भाई ने कहा-मेरी पत्नी अभी शिविर में है। उसके लिए घर छोड़कर बाहर जाना सबसे बड़ी समस्या है। मैंने उससे बात की। मुझे प्रतीत हुआ कि अब उसमें घर के प्रति वह मोह नहीं रहा, जो पहले था। उसका मोह शनैः शनैः क्षीण हो रहा है। यह उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
जब आध्यात्मिक व्यक्तित्व बनता है तब सबसे पहले अहंकार और ममकार की बेड़ियां टूटती हैं। जब तक ये बेड़ियां नहीं टूटतीं तब तक कोई भी व्यक्ति आध्यात्मिक व्यक्तित्व का निर्माण नहीं कर सकता। समस्याओं को पैदा कौन कर रहा है? आदमी जो दुःख ढो रहा है, उस दुःख का कर्ता कौन है? मनुष्य अपने आप समस्याओं को पैदा करता है। वही दुःख को उत्पन्न करता है। एक प्रिय व्यक्ति चला जाता है। जो चला गया, उसको कोई दुःख नहीं है। पीछे रहने वाले दुःख करते हैं, रोते हैं, बिलखते हैं? क्या मरने वाला भी रोता-बिलखता है? वह भी तो यहां से बिछुड़ा है पर मरने वाला रोता नहीं है। दूसरे इसलिए रोते हैं कि उन्होंने मान लिया था, यह मेरा है। यह सत्य का अतिक्रमण है, सचाई को झुठलाने का प्रयत्न है। यह शाश्वत नियम है-सम्बन्धों की इस दुनिया में कोई किसी का नहीं है। यदि कोई किसी का होता तो कोई किसी को छोड़कर नहीं जाता। हम यह अनादि काल से अनुभव कर रहे हैं कि व्यक्ति चला जाता है, धन चला जाता है, सत्ता और संपदा चली जाती है। यदि ये यथार्थ होते, संबंध शाश्वत होते तो कोई किसी को छोड़कर कभी नहीं जाता।
आदमी दुःखी क्यों होता है? यथार्थ में देखें तो प्रिय व्यक्ति के चले
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org