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________________ कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी ? बहुत उद्दण्ड और चंचल थे। अधिकारियों ने वैज्ञानिक दृष्टि से सब बातों पर ध्यान दिया । उन्होंने वैज्ञानिकों को आमंत्रित किया । वे आए। उन्होंने देखकर कहा-इस मकान की खिड़कियों, दरवाजों, कुर्सियों और फर्श पर बिछी कालीनों का रंग गहरा लाल है । यह लाल रंग विद्यार्थियों में उद्दण्डता, आवेश और चंचलता पैदा कर रहा है। इस समस्या का यही समाधान है कि लाल रंग को बदला जाए और उसके स्थान पर गुलाबी रंग कर दिया जाए । विद्यालय के अधिकारियों ने वैसा ही किया। खिड़कियों, दरवाजों आदि को गुलाबी रंग से रंग दिया। कुछ ही समय पश्चात् विद्यार्थियों में परिवर्तन आने लगा । उनकी उद्दण्डता और चंचलता कम हो गई । 44 1 नीले, पीले और गुलाबी रंग का ध्यान संवेगों पर प्रभाव डालता है, उनका परिष्कार करता है । एक आस्था उत्पन्न करने की आवश्यकता है। एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के निर्माण की आवश्यकता है। हम इस बात को स्थूल दृष्टि से न पकड़ें कि गुलाबी रंग को देखने से क्या होगा? कैसे दिखेगा गुलाबी रंग? पर यह वैज्ञानिक दृष्टि से सोचें कि हम अपने संकल्प के द्वारा वैसा रंग पैदा कर सकते हैं। रंग के परमाणु चारों ओर बिखरे पड़े हैं। जहां प्रकाश है, सूर्य की रश्मियां हैं, वहां चारों ओर रंग ही रंग हैं। पेड़-पौधों में रंग कहां से आता है? अंधेरे में हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता । सूर्य की रश्मियां आते ही रंग दिखने लग जाते हैं। रंग कहां से आए ? रंग सर्वत्र हैं । पीनियल ग्लेण्ड प्रकाश-संश्लेषी है । वह रंगों को पकड़ता है । वह प्रकाश में अधिक काम करता है । वह प्रकाश को ग्रहण करता है अर्थात् रंग को ग्रहण करता है 1 उससे हम अत्यधिक प्रभावित होते हैं। लाल रंग के कमरे में एक सप्ताह तक रह कर देखें, सिर दर्द से पीड़ित हो जाएंगे। सफेद रंग में ऐसा नहीं होता । काले रंग में जटिलताएं और बढ़ जाती हैं । हमारे में रंगों को पकड़ने की शक्ति है, क्षमता है। रंग संवेगों को उद्दीप्त करते हैं और शान्त भी करते हैं। रंगों में उद्दीपक और शामक - दोनों शक्तियां हैं। संवेग परिष्कार में रंग की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। विधायक दृष्टिकोण I चौथा प्रयोग है - दृष्टिकोण का विधायक होना । निषेधात्मक दृष्टिकोण से संवेग उद्दीप्त होते हैं । हम विद्यार्थियों में इस प्रकृति को अभिव्यक्त करने का प्रयत्न करें कि उनमें रचनात्मक या विधेयात्मक दृष्टि का जागरण हो । उनकी निषेधक दृष्टि कमजोर हो और विधायक दृष्टि बलवान बने । जो अभाव की ओर देखता है, वह निषेधात्मक भावों से भर जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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