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कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी
मस्तिष्क का जो फ्रन्टल लॉब है, जिसे हम योग की भापा में शान्ति केन्द्र कहते हैं, वह हमारे भावों और संवेगों के लिए जिम्मेदार है। यही है ललाट का भाग। जब कभी मन में विनम्रता का भाव जागृत होता है, ललाट झुक जाता है। यह प्रतीक है हृदय-परिवर्तन का। इस केन्द्र को जागृत करना है, इसमें परिष्कार लाना है।
दूसरा है पीनियल ग्लेण्ड में परिष्कार लाना। यह ज्योति-केन्द्र का स्थान है। शान्ति-केन्द्र प्रेक्षा और ज्योति-केन्द्र प्रेक्षा-ये दो प्रयोग हैं भाव परिष्कार या संवेग परिष्कार के। इनसे संवेगों को अनुशासित किया जा सकता है। यदि विद्यार्थी को दस-बारह वर्ष की अवस्था से ही प्रयोग कराए जाएं तो उसमें संवेग का सन्तुलन होगा, वह पारिवारिक और सामाजिक जीवन अच्छे ढंग से जी सकेगा । वह न अति कामुक और न अति चिड़चिड़ा होगा। उसमें न उदासी होगी और न वह अन्यमनस्कता का शिकार ही होगा।
आज जेनेटिक इंजीनियरिंग में यह चर्चा चल रही है-कुछ दशकों के बाद यह स्थिति बन सकती है कि माता-पिता जैसा लड़का चाहेंगे वैसे लड़के का जीन उन्हें लेबोरेटरी से मिल जाएगा। वकील, डॉक्टर, दार्शनिक आदि के जीन वे खरीद सकेंगे और उन्हीं के अनुरूप बच्चा प्राप्त कर सकेंगे। यह कब संभव होगा, ऐसा निश्चित नहीं कहा जा सकता पर जीन के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों का यह अभ्युपगम है, कन्सेप्ट है और वे इसे सत्य करने में जुटे हुए हैं।
विद्यार्थी को बचपन से ही यदि संवेग-परिष्कार का अभ्यास कराया जाए तो माता-पिता की इच्छा को शिक्षक पूरा कर सकेगा। उन्हें एक अच्छा और सुसंस्कृत लड़का मिल जाएगा। यह कोरी कल्पना नहीं है, वैज्ञानिक बात है। आध्यात्मिक और वैज्ञानिक-इन दोनों दृष्टियों से यह प्रमाणित हो चुका है कि आदमी की आदतों को बदला जा सकता है।
संवेग परिष्कार के प्रयोग इस दिशा में अचूक प्रयोग हैं। इनके अभ्यास से अनेक क्रोधी और व्यसनी व्यक्तियों ने अपने संवेगों से छुटकारा पाया है। अनेक मद्यपायी और अन्यान्य मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले व्यक्ति अपनी आदतों को छोड़कर सुख से जीवन यापन कर रहे हैं। भय की समस्याओं से त्रस्त व्यक्ति इन प्रयोगों से भयमुक्त होकर आज अभय का जीवन जी रहे
जब संवेग परिष्कृत होते हैं तब नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र का संतुलन बना रहता है। सामान्यतः हमारा यह विश्वास है कि संतुलित भोजन होता है तो
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