________________ AuTION 'नैतिक मूल्यों का संकट है' यह स्वर यत्र तत्र सर्वत्र सुनाई दे रहा है। वह क्यों है ? इस पर गंभीर चिन्तन नहीं होता। प्रश्न है-गम्भीर चिंतन कौन करे ? सत्ता के सिंहासन पर बैठे लोग अगले चुनाव में अपने दल को विजयी बनाने की चिन्ताएं करते हैं। बड़े उद्योगपति और बड़े व्यवसायी राजनीति पर अपना प्रभुत्व बनाए रखने की चिन्ता में व्यस्त हैं। बड़े बड़े साधु-संन्यासी अपने आश्रम और पीठों की ओर जनता को आकृष्ट करने की चिन्ता में व्यस्त हैं। नैतिक मूल्यों के विकास की चिन्ता कौन करे और क्यों करे ? बीसवीं शताब्दी में कुछ नाम अंगुलियों पर आए-राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी, आचार्य बिनोवा भावे, आचार्य तुलसी आदि। नैतिक मूल्यों के विकास में इनका महत्वपूर्ण अवदान है। किन्तु वर्तमान अतीत नहीं बनता। आज अपेक्षा है उस व्यक्तित्व की जो जातिवाद, साम्प्रदायिक कट्टरतावाद की भूमि से ऊपर उठा हुआ हो। समस्या को सुलझाने के लिए यह मानदण्ड मेरी दृष्टि में पर्याप्त नहीं है। दो बातें और अपेक्षित हैं-सतत समर्पण और गंभीर चिंतन। For Private & Personal use only. wwwjainelibrary.org