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शिक्षा
शिक्षा जगत में चेतना और मस्तिष्क विद्या की उपेक्षा हुई है इसलिए व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की बात उसमें नहीं जुड़ पाई। केवल एकपक्षीय विकास ही शिक्षा का आधार बना हुआ है । वातावरण और परिस्थिति को बदलने का प्रयत्न अर्थहीन नहीं है पर केवल परिस्थिति को बदलने से क्या मनुष्य अच्छा बन जाएगा? सामाजिक जीवन परिस्थितियों का चक्र है। एक के बाद दूसरी परिस्थिति आती रहती है। विद्यार्थी छात्रावास में रहा, उसे वहां अच्छा वातावरण मिला, वह शिक्षा प्राप्त कर घर में गया। घर की परिस्थिति उसके अनुकूल नहीं है । वह प्रतिकूल परिस्थिति में अपना संतुलन खो बैठेगा उसने अब तक अनुकूल परिस्थिति को देखा है। वह प्रतिकूल परिस्थिति को कैसे झेल पायेगा ? क्या उसकी विकसित चेतना कुण्ठाग्रस्त नहीं हो जाएगी ? शिक्षा का काम है - विद्यार्थी में अनुकूल और प्रतिकूल - दोनों प्रकार की परिस्थितियों को झेलने की क्षमता पैदा करना । उस क्षमता को पैदा करने के लिए जीवन के आंतरिक पक्ष को समझना जरूरी है ।
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वर्तमान शिक्षा बौद्धिकता के विभिन्न पक्षों को विकसित करने में सफल रही है। आज का शिक्षित व्यक्ति चिन्तन के क्षेत्र में पीछे नहीं है | कार्मिक दक्षता के क्षेत्र में वह बहुत आगे है । जीविकोपार्जन के नए-नए आयाम खोलने में उसने गति की है। बहुत सारे विद्यालय विद्यार्थी को अनुशासित करने में भी सफल हुए हैं। इस सफलता की पृष्ठभूमि में आंतरिक योग्यता और बाहरी वातावरण- दोनों का योग मिला है। इतना होने पर भी जो कुछ शेष है उस पर शिक्षा जगत का ध्यान आकर्षित होना चाहिए। व्यक्ति की मानसिक शांति और सामाजिक सुव्यवस्था आंतरिक और बाहरी परिष्कार से ही संभव हो सकती है ।
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बच्चा कोरा कागज नहीं है। उसमें आनुवंशिक संस्कार हैं, कर्मज संस्कार हैं । संस्कार - कोश में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के संस्कार तत्व विद्यमान हैं। अच्छे वातावरण और अच्छी परिस्थिति में बुरे संस्कार - बीज भूमिगत और अच्छे संस्कार-बीज अंकुरित हो जाते हैं। परिस्थिति बदलती है, आंतरिक क्रम भी बदल जाता है। अच्छे संस्कार के बीज भूमिगत और बुरे संस्कार के बीज अंकुरित हो जाते हैं । वातावरण या परिस्थिति सदा एक रूप रहे, यह इस दुनिया में संभव नहीं । जो संभव है, उस ओर हमारा ध्यान कम जाता है । जो संभव नहीं है, उस ओर हमारा ध्यान केन्द्रित बना हुआ है । शिक्षा का उद्देश्य अच्छे वातावरण में रखकर विद्यार्थी को अच्छा बनाया जाये, इतना ही नहीं होना चाहिए। उसका उद्देश्य होना चाहिए संस्कार-बीज का परिष्कार ।
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