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कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी
भेदरेखा है, उसे म्पप्ट करना आवश्यक है। स्मृति, कल्पना और चिन्तन-मन के य तीन कार्य बद्धि की परिधि में हैं इसीलिए सामान्यतः इन्हें बौद्धिक कर्म कहा जाता है। स्मृति अच्छी होती है, लोग कहते हैं-बद्धि बहुत अच्छी है। चिन्तन की क्षमता अधिक होती है। लोग कहते हैं-बहत बुद्धिमान आदमी हैं। इन्हें बौद्धिक विकास के रूप में मान्यता मिली हुई है। वास्तव में यह मानसिक विकास है, बौद्धिक विकास नहीं है। निर्णय की शक्ति, विवेक चेतना का जागरण बौद्धिक विकास है। बौद्धिक विकास बढ़े, स्मृति, कल्पना और चिन्तनात्मक मानसिक विकास बढ़े-इस दिशा में शिक्षा सक्रिय है। मानसिक विकास का एक दूसरा पहलू और है। धृति, सहिष्णुता और मनोबल की वृद्धि होना, यह मानसिक पक्ष शिक्षा के क्षेत्र में उपेक्षित है। इसलिए शिक्षा असंतुलित व्यक्तित्व का निर्माण कर रही है। इस पर चिन्तन करना शिक्षा क्षेत्र का काम है अथवा नहीं। यदि उस विकास को पारिवारिक वातावरण, सामाजिक परिस्थिति, धार्मिक परिवेश आदि पर छोड़ा जाए तो शिक्षाविदों को इस विषय में श्रम करने की कोई आवश्यकता नहीं। यदि उस विकास का माध्यम शिक्षा बने, यह अभीष्ट है तो मानसिक प्रशिक्षण के सभी पहलुओं को शिक्षा में जोड़ना अनिवार्य है। शिक्षा : दार्शनिक आधार
'बच्चा कोरा कागज है। उस पर जो चाहो सो लिखो'–यह अवधारणा विमर्शनीय है। इस अवधारणा के पीछे वातावरण और परिस्थितिवाद का सिद्धान्त काम कर रहा है। व्यक्ति वैसा बनता है, जैसा वातावरण होता है। परिस्थिति के सांचे में ढलकर ही वह अपने आपको स्थापित करता है, इस स्वीकृति में सचाई है पर वह अधूरी है। पूर्ण सचाई के लिए अन्तर्जगत और बाह्य जगत-दोनों में समन्वय का सूत्र खोजना होगा। व्यक्ति की क्षमता का मूल आधार है उसका अंतर्जगत। उसकी अभिव्यक्ति का आधार है बाह्य जगत। तर्कशास्त्र की भाषा में यह उपादान और निमित्त कारणों का योग है। केवल उपादान से क्षमता अभिव्यक्त नहीं होती, केवल निमित्त से वह उत्पन्न नहीं होती। यदि वातावरण और परिस्थिति ही सब कुछ है तो समान वातावरण और समान परिस्थिति में रहने वाले सभी विद्यार्थी समान योग्यता वाले होने चाहिए किन्तु ऐसा होता नहीं है। प्रत्यक्ष दर्शन यह है कि प्रतिकूल वातावरण में पलने वाला भी योग्य हो जाता है और अनुकूल वातावरण में पलने वाला भी योग्य नहीं हो पाता। मस्तिष्कीय रचना तथा चेतना के विकास की उपेक्षा कर हम इसकी व्याख्या नहीं कर सकते।
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