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________________ कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी ? 1. शरीर 2. श्वास 3. प्राण 4. मन 5. भाव / आभामण्डल / लेश्या 6. कर्म 7. चित्त - चेतना, बुद्धि । इन सात अंगों की समष्टि का नाम है जीवन । किसी एक कोण से होने वाली जीवन की परिभाषा समग्र नहीं हो सकती । जीवन की समग्र परिभाषा के लिए इन सात बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है । आवश्यक है मानसिक प्रशिक्षण 122 शिक्षा का प्रमुख अंग है - प्रशिक्षण । प्राचीन साहित्य का एक शब्द है - भावना | उसका अर्थवाहक नया शब्द है- प्रशिक्षण । भावना का अर्थ है - अभ्यास, पुनः पुनः प्रवृत्ति । प्रशिक्षण भी अभ्यासात्मक प्रक्रिया है । नई आदत का निर्माण करना और पुरानी आदत को बदलना, इन दोनों के प्रशिक्षण आवश्यक हैं। विद्यार्थी के लिए पुरानी आदत को बदलने के प्रसंग कम होते हैं, नई आदत का निर्माण करने के प्रसंग अधिक होते हैं । जीवन की गतिशीलता, निर्मलता और उपयोगिता विकसित हो, यह अच्छा जीवन जीने के लिए जरूरी है । गतिशीलता वैयक्तिक और सामाजिक- दोनों से जुड़ी हुई है। गतिशीलता के घटक तत्व तीन हैं-संकल्प, पराक्रम और कर्तव्यनिष्ठा । ये व्यक्ति के अपने गुण हैं । गतिशीलता के प्रेरक तत्व तीन हैं - प्ररेणा, प्रोत्साहन और समर्थन । ये सामाजिक हैं । विधायक भावों का विकास जीवन की निर्मलता है । निषेधात्मक भावों की गंदगी निर्मल धारा में मिलकर उसे अपवित्र बना देती है । निर्मलता वैयक्तिक है, पर कोई भी वैयक्तिकता ऐसी नहीं होती, जिसका प्रभाव समाज पर न हो अथवा जो समाज से प्रभावित न हो। वैयक्तिकता और सामाजिकता - दोनों सापेक्ष हैं। संबंध, परस्परता और उपयोगिता के बिना सामाजिक जीवन की व्याख्या नहीं की जा सकती। शिक्षा का कार्य विद्यार्थी को केवल बौद्धिक और कर्मकुशल बनाना ही नहीं है । उसे समाज के लिए उपयोगी बनाना भी है । वैयक्तिक सुख-सुविधा और धन संग्रह को सर्वस्व मानने वाला समाज के लिए उपयोगी नहीं हो सकता । त्याग, संयम और स्वार्थ के समीकरण के बिना कोई भी व्यक्ति निर्मल और उपयोगी नहीं बनता। कोरी गतिशीलता बहुत मूल्यवान नहीं होती । निवृत्ति - शून्य प्रवृत्ति ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। वर्तमान शिक्षा मुख्य रूप से गतिशीलता की शिक्षा है । मूल्य-परक शिक्षा निर्मलता और उपयोगिता की शिक्षा है। दोनों अलग-अलग रहें तो समग्र व्यक्तित्व का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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