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________________ बदलाव कैसे आए? 117 उसका प्रभुत्व एकाकार हो जाता। मनुष्य की क्या दशा होती? प्राणी जगत के सामने जीने का कोई विकल्प शेष नहीं रहता। प्रकाश का अस्तित्व जीवन-यात्रा को बनाए हुए है और उसने विकास की गति को तेज किया है। यदि मनुष्य को बदलने का प्रयत्न नहीं होता तो हिंसा का एकछत्र साम्राज्य हो जाता। इस अवस्था में न समाज की कल्पना की जाती और न विकास के द्वार को खटखटाया जाता। ___अंधकार से प्रकाश की ओर (तमसो मा ज्योतिर्गमय) ले चलने का वैदिक ऋषि का संकल्प सुख और शांति का मूल्यवान मंत्र है। तम को अपरिहार्य मानने वाला सफलता के स्वर को मुखर नहीं बना सकता, विकास के चरण को गति भी नहीं दे सकता। इसलिए मनुष्य को बदलने का प्रयत्न अर्थहीन प्रयत्न नहीं है। मनुष्य के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उसकी सार्थकता असंदिग्ध है। सदाचार और असदाचार का संघर्ष प्रतिक्षण चल रहा है-कभी व्यक्त रूप में और कभी अव्यक्त रूप में। इस संघर्ष के बिना उन दोनों के बीच भेदरेखा खींचना भी कठिन हो जाता। मनुष्य को बदलने की जरूरत इसलिए है कि हिंसा बढ़ रही है, उसकी साधन-सामग्री बढ़ रही है। फलतः अशांति, आतंक और तनाव का वातावरण भी गर्मा रहा है। बदलाव का बिन्दु क्या हो? मनुष्य को किस स्तर पर बदलना है? इसका सरलतम उत्तर है-मनुष्य की चेतना को हिंसा से अहिंसा की ओर ले जाना है, 'हिंसातो मा अहिंसां गमय' - इस मंत्रपाठ को शक्तिशाली बनाना है। बदलाव कैसे आए? इस प्रश्न पर विचार किए बिना बदलने का उद्देश्य और बदलाव का बिन्दु-ये सब आकाश-कुसुम बन जाते हैं। शरीर, मन, भाव-धारा, वातावरण, परिस्थति, ग्रहों के विकिरण और कर्म के रहस्यों को समझे बिना बदलाव की प्रक्रिया का निर्धारण नहीं किया जा सकता, उसका प्रयोग भी नहीं किया जा सकता। यह माना जाता है कि मनुष्य के स्वभाव पर वंशानुक्रम, परंपरा, पर्यावरण और शरीर-रचना का प्रभाव होता है। उसके भविष्य का निर्माण अतीत की शिक्षा, संगति और विश्वास पर निर्भर है। इस मान्यता में सत्यांश है। उस पर हमारा ध्यान केन्द्रित होना चाहिए। हम किसी एक कारण तत्व का अवलंबन लेकर परिवर्तन की प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ा सकते। सबसे पहले हम बदलाव के लिए उत्तरदायी रहस्यों को समझने का प्रयत्न करें। परिस्थितिवाद के अनुसार यह माना जाता है-मनुष्य का निर्माण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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