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________________ पर्यावरण 101 मात्रा में दोहन किया जा रहा है। इससे जगत का संतुलन बिगड़ रहा है। ऊर्जा के स्रोत समाप्त होते जा रहे हैं। खनिज भंडार खाली होता जा रहा है। आज के वैज्ञानिक ऊर्जा के नए स्रोत की खोज में लगे हुए हैं साथ-साथ उपलब्ध स्रोतों की समाप्ति से चिन्तित हैं। पानी का अतिमात्रा में उपयोग किया जा रहा है। आशंका है कि एक दिन पीने का पानी दुर्लभ हो जाएगा। जंगलों और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के परिणाम अनेक प्रदेश भुगत रहे हैं। वर्षा की कमी का बहुत बड़ा कारण माना जा रहा है पेड़ों का कट जाना। __ इच्छा और भोग, सुखवादी और सुविधावादी दृष्टिकोण ने हिंसा को बढ़ावा दिया है और साथ-साथ पर्यावरण का संतुलन भी विनष्ट किया है। अहिंसा का सिद्धान्त आत्मशुद्धि का है तो साथ-साथ वह पर्यावरण शुद्धि का भी है। पदार्थ सीमित हैं, उपभोक्ता अधिक हैं और इच्छा असीम है। अहिंसा का सिद्धान्त है-इच्छा का संयम करना, उसकी काँट-छाँट करना। जो इच्छा पैदा हो, उसे उसी रूप में स्वीकार न करना, किन्तु उसका परिष्कार करना । आज के वैज्ञानिक और उद्योगपति मनुष्य के सामने अधिक-से-अधिक सुविधा के साधन प्रस्तुत करना चाहते हैं। जो पहले कभी नहीं बने, वैसे पदार्थों का निर्माण कर उन्हें जन-साधारण के लिए सुलभ करना चाहते हैं। एक ओर जनता का सुविधावादी दृष्टिकोण बन गया है, दूसरी ओर सुविधा के साधनों के निर्माण की होड़ लगी हुई है। जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएं कुछ गौण बन गई हैं, सुविधा के साधन और प्रसाधन सामग्री-ये मुख्य बन गए हैं। इस स्थिति में अनावश्यक हिंसा बढ़ी है और साथ-साथ पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ा है। हिंसा और अहिंसा का प्रारंभिक बिन्दु आज पर्यावरण के प्रदूषण का कोलाहल बहुत हो रहा है। पर वह प्रदूषण कैसे मिटे? सुविधावादी आकांक्षा की आग जले और प्रदूषण का धुआं न उठे, यह कब संभव है? अहिंसा के सिद्धान्त की उपेक्षा कर पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को सुलझाया नहीं जा सकता। जिस प्रकार उद्योग जगत और व्यवसाय जगत मनुष्य को अधिक-से-अधिक सुविधावादी बना रहा है उसी प्रकार अहिंसानिष्ठ लोग उसे अहिंसक बना सकें, तभी पर्यावरण के प्रदूषण की समस्या का समाधान संभव बन सकता है। अहिंसा को बहुत स्थूल अर्थ में समझा जा रहा है, उसकी गहराई में जाने का प्रयत्न कम हो रहा है। हिंसा का प्रारंभिक बिन्दु किसी को मार डालना नहीं है और अहिंसा का प्रारंभिक बिन्दु किसी को न मारना ही नहीं है। हिंसा का प्रारंभ बिन्दु है-दूसरे जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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