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________________ पर्यावरण 91 मनुष्य अनित्य है। वनस्पति भी अनित्य है। मनुष्य अशाश्वत है। वनस्पति भी अशाश्वत है। मनुष्य उपचित और वनस्पति भी उपचित और अपचित होता है। अपचित होती है। मनुष्य विविध अवस्थाओं की वनस्पति भी विविध अवस्थाओं प्राप्त होता है। को प्राप्त होती है। अभय का अवदान __ महावीर ने कहा-सब जीवों को अपने समान समझो। वनस्पति के संदर्भ में भी उनका यही प्रतिपादन था-तुम देखो। वनस्पति दूसरे जीवों की अपेक्षा तुम्हारे अधिक निकट है। पृथ्वी, अप्, तैजस, वायु आदि के जीवों को समझना कुछ कठिन है किन्तु वनस्पतिकाय को समझना आसान है। तुम इसे समझो, इस पर मनन करो। मनन कर अभय-दान दो। जिससे तुम्हें जीवन मिल रहा है, उसे भी तुम भय दे रहे हो। तुम उसे सताना छोड़ दो। यह सत्य है-तुम्हारी आवश्यकताएं उस पर निर्भर हैं। तुम खाए बिना नहीं रह सकते किन्तु तुम कम से कम उसे अनावश्यक मत सताओ। मन में यह भावना रखो-यह हमारा उपकार करने वाला जगत है। इसके प्रति तुम्हारा जो क्रूर व्यवहार होता है, उसके लिए क्षमा-याचना करो। तुम्हें आवश्यकतावश किसी पेड़ की टहनी को काटना पड़ा है, किसी वनस्पति को खाना पड़ा है जो तुम उसके प्रति मन में क्षमा-याचना करो। तुम्हारे मन में यह भाव जागे-विवशता के कारण मैं वनस्पति जगत का उपभोग कर रहा हूं। मेरी विवशता के लिए वह मुझे क्षमा करे। यह भाव कृतज्ञता का भाव होगा। __ महावीर ने जो कहा, उसका हार्द है-वनस्पति जगत के प्रति करुणा, सहयोग, सहृदयता, कृतज्ञता और क्षमायाचना का भाव होना चाहिए। बहुत सारे लोग पेड़ों को काटकर बीमार हो जाते हैं। उन्हें पता ही नहीं चलता-यह बीमारी क्यों आई? जापान का एक रहस्यविद् हुआ है--डॉ. हिरोशी मोकोयामा। उसने एक रोगी को देखा। उसकी बीमारी का कोई पता नहीं चला। मोकोयामा ने पूछा, 'तुम्हारी सास की मौत हुई है? 'हां' 'तुम्हारे घर के सामने कोई पुराना पेड़ है?' 'हां' 'बस, यही है तुम्हारी बीमारी का कारण । कुछ लोग उस पेड़ को काटना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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