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पंचनमस्कार उपधान विधि"पंचमंगलमहासुयक्खंधस्स पंचज्झयणेगचूलापरिविखत्तस्स पवरपवयणदेवयाहिठियस्स तिपदपरिछिएणेगालावगस्स सत्तक्खरपरिमाणं अणंतगमपजवत्थपसाहगं सम्यमहामंतपवर विजाणं परमबीयभूयं "नमो अरहताणं" ति पढमज्झयणं अहिज्जेयव्वं, तदियहे य आयंबिलेणं पारेयव्वं ।"
__ अर्थात्-पंचमंगल महाश्रुत स्कन्ध जो पांच अध्ययन और एक चूलिका से परिक्षिप्त है, जो प्रवर-प्रवचन देवता से अधिष्ठित है, इसका प्रथमाध्ययन जो तीन पदों में विभक्त और एक आलापक रूप है, सप्ताक्षरपरिमित है, अनंत गम-पर्यायात्मक है और सर्व महामंत्र तथा प्रवर विद्याओं का बीज रूप है, जिसका शब्दात्मक रूप "नमो अरहंताणं" यह है, यही पंच मंगल का प्रथम अध्ययन है।
गोयमा चेइयालए+जंतुविरहियोगासे+खितिणिहियजाणुगंसि उत्तमंगकरकमलमउलसोहजलिफुडेणं सिरिउसभाइ पवरवरधम्मतित्थयरपडिमाविम्बविणिवेसियणयणमाणसेगग्ग तग्गयज्झवसाणेणं समयाएगग्गया दढचरितादिगुणसंयमोववेया+ णिणियाणं दुवालसभत्तट्ठिएणं चेहयालए जंतुविरहियोगासे"।
अर्थ–'हे गौतम जिनालय में जीव जन्तु रहित स्थान में जानु पृथ्वी पर टेककर शिर पर कर कमल द्वारा अंजलि करके श्री ऋषभादिसर्व धर्मतीर्थंकरों की प्रतिमा-बिम्ब पर नेत्र मन एकाग्रकर तद्गताध्यवसायवाला होकर समता, एकाग्रता और चारित्रगुण संपत्ति से युक्त निदान रहित ५ उपवास आदर के निर्जन्तु जिनालय में ठहरकर पूर्व सेवा करे, फिर अरहंतादि पंच नमस्कार के ५ पद पांच आयंबिल करके पढे, चूलाके उद्देशक ३ “एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो १। मंगलाणंच सव्वेसि २। पढमं हवइ मंगलं ३॥"
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