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जो भिक्षु कालिकश्रुत की तीन से अधिक पृच्छा पूछे और दृष्टिवाद के सात से अधिक प्रश्न पूछे । जो चार महामहों में स्वाध्याय करे, इन्द्रमह, स्कन्दमह, यक्षमह, भूतमह ।
जो भिक्षु चार महामह प्रतिपदाओं में स्वाध्याय करे, सुग्रीष्म प्रतिपदा, आश्विनी प्रतिपदा, आपाढी प्रतिपदा, कार्तिकी प्रतिपदा में।
जो भिक्षु पौरुषी में करने के स्वाध्याय को न करे । जो भिक्षु चार बार स्वाध्याय न करे । जो भिक्षु अस्वाध्यायिक में स्वाध्याय करे। जो भिक्षु नीचे के सूत्रों को न वंचाकर ऊपर के सूत्रों को वंचाये ।
जो भिक्षु नव ब्रह्मचर्य को न पढाकर ऊपर के श्रुत की वाचना दे।
जो भिक्षु अपात्र को वाचना दे और पात्र को वाचना न दे।
जो भिक्षु योग्य (प्राप्त) को वाचना न दे और अयोग्य (अप्राप्त) को वाचना दे।
जो भिक्षु अव्यक्त को वाचना दे और व्यक्त को वाचना न दे।
जो भिक्षु अप्राप्त (अधिकार रहित) को पढाये, प्राप्त को न पढाये (प्राप्त अप्राप्त का अर्थ यहां पर्याय-वय समझना चाहिए।
जो भिक्षु दो सदृश पढने वालों में से एक को पढाये, दूसरे को न पढाये।
जो भिक्षु आचार्य, उपाध्याय द्वारा अदत्त ज्ञान को ग्रहण करे । जो भिक्षु अन्य तीथिक, गृहस्थ को वाचना दे अगर ग्रहण करे ।
जो भिक्षु पासत्थ, अवसन्न, कुशील, नित्यक, संसक्त इन पांचों को वाचना दे अथवा इनसे वाचना ले। चातुर्मासिक उद्घातित परिहारस्थान को प्राप्त होता है।
(२०) विंशतितमोद्देशक:---जो भिक्षु मासिक परिहारस्थान की कपटरहित आलोचना करे तो मासिक और कपटसहित आलोचना करे तो द्विमासिक, दो मासिक परिहारस्थान की प्रति
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