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बद्धिक शय्या - संस्तारक देखकर न हटावें, पारिहारिक शय्या संस्तारक आज्ञा लिए बिना मूल स्थान से बाहर ले जाय । शय्या संस्तारक पारिहारिक अपने हाथ से दिए बिना चला जाय, शय्यातर सम्बन्धी शय्या संस्तारक स्वयं खोले बिना और वापस दिये बिना चला जाय, पारिहारिक अथवा शय्यातर सम्बन्धी शय्या संस्तारक ठीक किये बिना, गुम जाने पर, उसकी गवेषणा न करे, थोडे समय के लिए लाई उपधि की भी प्रतिलेखना न करे और ऐसा करने वाले का अनुमोदन करने वाले भिक्षु को मासिक उद्घातित स्थान प्राप्त होता है ।
(३) तृतीयो६ शक- जो भिक्षु मुसाफिर खानों में, आरामगृहों में गृहस्थों के घरों में, अन्य तीर्थिक अथवा गृहस्थ स्त्री पुरुषों से खान, पान, खादिम पदार्थों को दीनता से मांगे, कौतुहल वृत्ति से आए हुए अन्य तीर्थिक अथवा गृहस्थ से दीनता दिखाकर याचना करें, अन्य तीर्थिकों अथवा गृहस्थों के पास से सामने लाया हुआ भोजनादि ग्रहण करें, उनके पीछे जाकर, उनको घेरकर, उनसे छुपी बातें करके दीनता से याचना करे, जो भिक्षु गृहस्थ के घर भिक्षा के लिए जाए और जाने पर घर स्वामी के निषेध करने पर भी फिर उसके घर जाए, संस्कृत भोजन देखकर प्रशन, पानादि ग्रहण
करे गृहस्थ घर में भिक्षार्थ प्रवेश करके लाया हुआ आहार ग्रहण करे, जो भिक्षु को दबावे, उनका परिमर्दन करें, तेल, घी, चर्बी पैरों की मालिश करे अथवा उन्हें चुपडे, लोध कल्क से पैरों का उद्वर्तन करे, ठण्डे जल से सीचें अथवा धोए ।
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तीन घर अपने पैरों
के उपरान्त से को पोंछे, पेरों
अथवा मक्खन से
अथवा अन्य किसी अथवा गर्म जल से
जो भिक्षु अपने शरीर का प्रमार्जन संवाहन करे, तेलादि से मालिश करे, लोध के कल्क आदि से उद्वर्तन करे, शीत आदि जलसे धोए, पोथी आदि के रंग से रंगे। जो भिक्षु अपने शरीर में उत्पन्न हुए फोडे, पिटक, मस्से, मेद आदि को किसी प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र से काटे, काटकर पीप या खून निकाले, ठण्डे गर्म जल से उसको
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