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तक रही थी, यह नजरों देखी बात है, इससे हमारा अनुमान है कि निशीथ के सूत्रों और भाष्य पर प्राकृत टीका बनाने वाले सिद्धसेन क्षमाश्रमण विक्रमीय सातवीं शती के अन्त में और विशेष चूर्णिकार आचार्य जिनदास गणि महत्तर आठवीं शती के उत्तरार्ध भावी ग्रन्थकार मानने में कोई बाधक नहीं होता।
नवमी शती के तत्त्वार्थ टीकाकार आचार्य सिद्धसेन गणि ने निशीथ विशेष चूणि का उपजीवन करने के प्रमाण मिलते हैं, इससे निश्चित है कि वे तत्त्वार्थ टीकाकार सिद्धसेन के पूर्ववर्ती थे, इसमें कोई शंका नहीं रहती।
निशीथ नियुक्तिकारनिशीथ नियुक्तिकार कौन ? निशीथ नियुक्तिकार ही आचारांग नियुक्तिकार हैं यह कहा जाता है, परन्तु नियुक्तिकार कौन इस प्रश्न को सुलझाये बिना आचाराँग नियुक्तिकार को निशीथ नियुक्तिकार कहने से कोई स्पष्टीकरण नहीं होता, श्वेताम्बर सम्प्रदाय में नियुक्तिकार भद्रबाहु माने जाते हैं, परन्तु यह मान्यता भी दशवीं ग्यारहवीं शती की है, पहले की नहीं, किसी भी प्राचीन टीका चूर्णि आदि में चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु स्वामी नियुक्तियों के कर्ता हैं ऐसा उल्लेख नहीं मिलता, निशीथ विशेषणि आदि में "इयं भद्दबाहु कता गाथा' इत्यादि उल्लेख अवश्य मिलते हैं, परन्तु इन उल्लेखों से यह सिद्ध नहीं हो सकता कि दश सूत्रों की नियुक्तियां बनाने वाले भद्रबाहु थे।
चूर्णिकार जिस गाथा को भद्रबाहु कृत कहते हैं, उसी गाथा को मलयगिरि आदि टीकाकार प्राचीन गाथा के नाम से उल्लिखित करते हैं, इन परस्पर विरुद्ध मध्यकालीन उल्लेखों से इतना जरूर कह सकते हैं कि आवश्यक आदि सूत्रों पर प्राचीन भद्रबाहु की निबन्ध के रूप में नियुक्तियां हों तो आश्चर्य नहीं है, परन्तु विद्यमान नियुक्तियां भद्रबाहुकृत हैं, ऐसा सिद्ध करने के लिए कोई
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