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________________ २८६ देवी ने कहा- आप अपने संघ से सूचित करें कि वह आयन्दा राजसभा में यह प्रस्ताव उपस्थित करें "यदि स्तूप पर स्वयं श्वेत ध्वज फरकने लगे तो स्तूप जैनों का समझा जाय और लाल ध्वज फरकने पर बौद्धों का ।" क्षपक ने मथुरा जैन संघ के नेताओं को अपने पास बुलाकर वन देवतोक्त प्रस्ताव की सूचना की, संघ नायकों ने न्यायाधिकरण के सामने वैसा ही प्रस्ताव उपस्थित किया, राजा तथा न्यायाधिकारियों को प्रस्ताव पसन्द आया और बौद्ध नेताओं से इस विषय में पूछा, बौद्धों ने भी प्रस्ताव को मंजूर किया । राजा ने स्तूप के चारों ओर रक्षक नियुक्त कर दिये, कोई भी व्यक्ति स्तूप के निकट तक न जाए, इसका पूरा पूरा बन्दोबस्त किया इस व्यवस्था और प्रस्ताव से नगर भर में एक प्रकार का कौतुकमय अद्भुत रस फैल गया, दोनों सम्प्रदाय के भक्तजन अपने अपने इष्ट देव का स्मरण कर रहे थे, तब निरपेक्ष नगर जन कब रात बीते और स्तूप पर फहराती हुई ध्वजा देखें, इस चिन्ता से भगवान भास्कर से जल्दी उदित होने की प्रार्थनाएं कर रहे थे । सूर्योदय होने के पूर्व ही मथुरा के नागरिक हजारों की संख्या में स्तूप के इर्द-गिर्द स्तूप की ध्वजा देखने के लिये एकत्रित हो गये । सूर्य के पहले ही उसके सारथि ने स्तूप के शिखर पर दंड तथा ध्वज पर प्रकाश फेंका, जनता को अरुण प्रकाश में सफेद वस्त्र सा दिखाई दिया, जैन जनता के हृदय में आशा की तरंग बहने लगी ! इसके विपरीत बौद्ध धर्मियों के दिल निराशा का अनुभव करने लगे । सूर्य देव ने उदयाचल के शिखर से अपने किरण फेंककर सब को निश्चय करा दिया कि स्तूप के शिखर पर श्वेत ध्वज फरक रहा है, जैन धर्मियों के मुखों से एक साथ "जैनं जयति शासनम् " की ध्वनि निकल पड़ी, और मथुरा के देव निर्मित स्तूप का स्वामित्व जैन संघ के हाथों में सौंप दिया गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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