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________________ २६६ 1 शत्रु जयावतारेऽत्र वस्तुपालेन कारिते । ऋषभः पुण्डरीकोऽष्टापदो नन्दीश्वरस्तथा ॥ १२ ॥ सिंहयाना हेमवर्णा, सिद्ध-बुद्धसुतान्विता । कम्राम्रलुम्विभृत्-पाणि-रत्राम्बा संघ विघ्नहृत् ||१३|| (वि. ती. कृ. पृ. ७.) "यहाँ भगवान् के तीन कल्याणक होने के कारण से ही मन्त्रीश्वर वस्तुपालने सज्जनों के हृदय को चमत्कृत करने वाला तीन कल्याणक का मन्दिर बनवाया । जिन - प्रतिमाओं से भरे इस इन्द्र मण्डप में रहे हुए भगवान् नेमिनाथ का स्नपन करने वाले पुरुष इन्द्रों की शोभा पाते हैं । इस पर्वत की चोटी को गजेन्द्र पद नामक कुण्ड जो अमृत के से जल से भरा और स्नपनीय जिन - प्रतिमाओं का स्नपन कराने में समर्थ है - भूषित कर रहा है । यहां वस्तुपाल द्वारा कारित शत्रुञ्ज्यावतार - विहार में भगवान् ऋषभदेव, गणधर पुण्डरीक स्वामी, अष्टापद चैत्य तथा नन्दीश्वर चैत्य यात्रियों के लिए दर्शनीय चीज हैं । इस पर्वत पर सुवर्ण की सी कान्तिवाली सिंहवाहन पर आरूढ सिद्ध-बुद्ध नामक अपने पूर्व भविक दो पुत्रों को साथ लिए कमनीय ग्राम की लुम्ब जिसके हाथ में है ऐसी अम्बादेवी यहां रही हुई संघ के विघ्नों का विनाश करती है ।' उज्जयन्त तीर्थ सम्बन्धी उक्त प्रकार के पौराणिक तथा ऐतिहासिक वृत्तान्त बहुतेरे मिलते हैं, परन्तु उनके विवेचन का यह योग्य स्थल नहीं, हम इसका विवेचन यहीं समाप्त करते हैं । ( ३ ) गजाग्रपद तीर्थ गजाग्रपद भी आचाराङ्ग निर्मुक्ति निर्दिष्ट तीर्थों में से एक है, परन्तु वर्तमान काल में यह व्यवच्छिन्न हो चुका है, इसकी अवस्थिति सूत्रों में दशार्णपुर नगर के समीपवर्ती दशार्णकूट पर्वत पर बताई है । आवश्यक चूर्णि में भी इस तीर्थ को दशार्ण देश के मुख्य नगर दशार्णपुर के समीपवर्ती पहाड़ी तीर्थ लिखा है और इसकी उत्पत्ति का वर्णन भी दिया है, जिसका संक्षिप्त-सार नीचे दिया जाता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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