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. उज्जयन्त पर्वत के प्रद्युम्नावतार तीर्थ स्थान में अम्बिकाआश्रमपद नामक वन (उद्यान) है जहाँ पर पीन वर्ण की मिट्टी पाई जाती है, जिसे तेज आग की आँच देने से बढिया सोना बनता है ॥ २८ ॥
उज्जयन्त पर्वत के प्रथम शिखर पर चढकर दक्षिण दिशा में तीन सौ धनुष अर्थात् बारह सौ हाथ नीचे उतरना, वहां पूतिकरज नामक एक 'बिल' अर्थात्-'भू-विवर' मिलेगा,उसको खोलकर सावधानी के साथ उसमें प्रवेश करना और अड़तालीस हाथ तक भीतर जाने पर लोहे का सोना बनाने वाला दिव्य रस मिलेगा जो जम्बुफल-सदृश रंग का होगा ।।३०।३१।।
उज्जयन्त पर्वत पर ज्ञानशिला नाम से प्रख्यात एक बड़ी शिला है, जिस पर गण्ड शैलों का एक जत्था रहा हुआ है. उससे उत्तर दिशा में जाने पर दक्षिण की तरफ जाने वाला एक अधोमुख विवर (गड्डा) मिलेगा उसमें चालीस हाथ नीचे उतरने पर दक्षिण भाग में हिंगुल जैसा रक्तवर्ण शत-वेधी रस मिलेगा, जो तांबे को वेध कर सोना बनाता है, इसमें कोई संशय नहीं है ।।३६।३७।।
इस प्रकार जो जिनभक्त कुष्माण्डी ( अम्बिका ) देवी को प्रणाम करके मन में से शंका लोभ को हटाकर उज्जयन्त पर्वत पर रसायन कल्प की साधना करेगा वह मनोभिलषित सुख को प्राप्त करेगा ॥४१॥ ___ जिनप्रभ सूरि कृत उज्जयन्त महाकल्प के अतिरिक्त अन्य भी अनेक कल्प और स्तव उपलब्ध होते हैं, जो पौराणिक होते हुए भी ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्त्व के हैं, हम इन सब के उद्धरण देकर लेख को नहीं बढायेंगे, केवल उपयोगी संक्षिप्त सारांश देकर लेख को पूरा करेंगे।
रैवतक-गिरि-कल्प संक्षेप में इस तीर्थ के विषय में कहा गया है, भगवान् नेमिनाथ ने छत्रशिला के समीप शिलासन पर दीक्षा ग्रहण की, सहस्राम्र वन में केवलज्ञान प्राप्त किया, लक्षाराम में
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