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________________ १० निशीथ के निर्माण समय में बनाने बनवाने की परिस्थिति उपस्थित होने पर निशीथ में विशेष विधान रखना पड़ा । } अगले १५, १६, १७ और १८ इन चार सूत्रों में क्रमशः सीने के लिए सूई, बाल काटने के उस्तरे नख काटने की नखहरणी और कर्णशोधनक इन चार उपकरणों की अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ द्वारा तैयार न करवाने, करते हुए का अनुमोदन न करने का विधान किया है । चूर्णिकार लिखते हैं: - 'सूई, पिप्पलक ( उस्तरा ), नखच्छेदन और कर्णशोधन ये चारों ही औपग्रहिक उपकरण हैं, इनमें से एकएक उपकरण गुरु (आचार्य) के पास रहना चाहिए, शेष साधु भी उन्हीं से अपना काम कर सकते हैं, यदि गच्छ बहुत बड़ा हो तो अन्य साधु भी बांस अथवा सिंग से बने हुए इन पदार्थों में से एकएक को रख सकते हैं, लोहमय नहीं रख सकते ।' इसी प्रकार सूत्र १६ से २२ तक में निष्प्रयोजन सूई, उस्तरा, कर्णशोधन और नखच्छेदनी इन पदार्थों को न मांगने का अथवा इन्हीं पदार्थों को अवधि से मांगने का और इन्हीं पदार्थों को पारिहारिक के रूप में मांगकर उनसे अन्य कार्य करने का निषेध किया गया है । उपर्युक्त सभी उपकरणों का निशीथमात्र में विधान है "बृहत्कल्य और व्यवहाराध्ययन" में इन बातों का विशेष विधान दृष्टिगोचर नहीं होता, इसका कारण यही है कि भद्रबाहु स्वामी के समय में श्रमण श्रमणियों की संख्या इतनी नहीं थी और जो थे वे भी इन औपग्रहिक उपकरणों का उपयोग कम करते थे । आर्चाय आर्यरक्षितसूरिजी के समय में निर्ग्रन्थ श्रमण श्रमणियों की संख्या बहुत ही बढ़ गयी थी, सभी की सहनशीलता भी समान नहीं थी । इस परिस्थिति को देखकर श्रुतधर आर्य रक्षितसूरिजी महाराज ने प्राचीन काल से चली आने वाली जैन श्रमणों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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