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मुकुरविमलगण्डं चन्द्रसंकाशतुण्डं, गजकरभुजदण्डं कामदाहाग्निकुण्डम् । विनुतमुनिपपण्ड गोमठेशप्रचण्ड,
गणनिवहकरण्डं नौभि नामेय पिण्डम् ॥६॥ श्रीमज्जिनाधीशपदाञ्जभृगः, कामादिमत्तेभमहाभृगेन्द्रः । हेमादिदानेषु महीजधेनुः,श्रीचारुकीत्यार्यमुनिः स जीयात् ॥७॥ "इति शब्दानुशासने चिन्तामणौ वत्तौ चतुर्थस्याध्यायस्य चतुर्थपाद.। समाप्तोऽध्यायश्चतुर्थः ॥शम् ।। समाप्तोऽयं ग्रन्थः।"
__भद्र भूयात् श्रीः श्रीः श्रीः 'एङि पररूपम्'' यह सूत्र जैनेन्द्र और पाणिनीय इन दोनों व्याकरणों में समान है।
“एचोऽयनायावः' यह सूत्र पाणिनीय और जैनेन्द्र में समान हैं पर शाकटायन में “एचोच्ययवायान्'' यह पाठ है।
"ऐस् भिसोऽद्भशः' यह सूत्र शाकटायन का है, पाणिनीय में "अतोमिस ऐस्" ऐसा सूत्र है।
"कडारादयः कर्मधारये' यह सूत्र शाकटायन का है तब कडारः कर्म धारयः" ऐसा पाणिनीय में है।
___ "कस्कादौ" यह सूत्र जैनेन्द्र का शाकटायन में “कस्कादिषु" ऐसा पाठ है।
"कुमारश्रमणादिना" यह सूत्र शाकटायन का है "कुमार श्रमणदिभिः ऐसा जैनेन्द्र में है।
केकय-मित्र-यु-प्रलयस्येय्यादेञ्णिति" यह शाकटायन का सूत्र है, जैनेन्द्र में “केकय मित्रयु प्रलयानां" ऐसा है । ___"चटकाण्णैरः” इस रूप में जैनेन्द्र महावृत्ति में पाया जाता है, जब कि "चटकादैरण' शाकटायन में मिलता है। ___ "तस्मै हितोऽराजा चार्य ब्राह्मणवृष्णः” शाकटायन में है तब "तस्मै हितम्" जैनेन्द्र में है।
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