SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२३ पूज्यपादापराख्याय, नमः श्री देवनन्दिने । व्यधायि पंचकं येन, सूत्रं जैनेन्द्रमूलकम् ॥६॥ महावृत्तिकृते तस्मै, नमोऽस्त्वभयनन्दिने। यद्वाक्यादभया धीराः, शब्दविद्यासु सन्ततम् ॥७॥ स्रष्टा दृष्ट्वा सुसृष्टिं स्तुतिमकृत मुखैश्चाथ जैनेन्द्रशाब्दी, जिह्वा भूयस्त्वभावादुरगपतिरतोऽध्येति नात्येति पारम् । रीढां दुःखावलीढां निजमदवशगाः प्रापुरिन्द्रादयोऽपि कृत्वेमां देवनन्दी विविधसुरगणैः पूज्यपादाह्वयोऽभूत् ।।८॥ प्रमाणमकलंकीयं, पूज्यपादीयलक्षणम् । धानंजयं च सत्काव्यं, रत्नत्रयमुदाहृतम् ॥६॥" समाप्ता प्रशस्तिः ।। शब्दार्णवचन्द्रिका का मङ्गलाचरण"श्री पूज्यपादममलं गुणनन्दिदेवं, सोमामरव्रतिपपूजित पादयुग्मम । सिंद्धं समुन्नतपदं वषभं जिनेन्द्र, सच्छब्दलक्षणमहं विनमामि वीरम ॥१॥ श्री मूलसंघ जलजप्रतिवोधभानोमेंदुदीक्षितभुजंग सुधाकरस्य । राद्धांततोयनिधिवद्धिकरस्य वत्ति, रेभे हरीदुयतये वरदीक्षिताय ।।२।। "लक्ष्मीरात्यंतिकी यस्य, निरवद्यावभासते । देवनदितपूजेशे, नमस्तस्मै-स्वयंभुवे ॥१॥" यह श्लोक मूलकार का नहीं है, बल्कि महावृत्तिकार का है, शब्दार्णव के सम्पादक ने बिना समझे ही इसको सोमदेव के मंगलाचरणश्लोकों के साथ जोड़ दिया है । शब्दार्ण-वप्रशस्ति "स्वस्ति श्री कौल्लापुरदेशांतर्वाजुरिकामहास्थानयुधिष्ठिरावतार-महामंडलेश्वरगंडरादित्यदेव-निर्मापित-त्रिभुवनतिलक जिना २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy