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वाक्य पदीय श्री भर्ता हरि कृत
टी० पुण्यराज तथा हेलाराज
वाक्यपदीय ग्रन्थ वैयाकरण वसुरात शिष्य वैयाकरण भर्तृहरि द्वारा निर्मित महानिबन्ध है, इस निबन्ध में व्याकरण सम्बन्धी स्फोट, वाक्य, पदादि परिभाषाओं का सैद्धान्तिक दृष्टि से प्रतिपादन किया है, मूल ग्रन्थ तीन काण्डों में सम्पूर्ण हुआ है, प्रथम दो काण्डों की टीका पुण्यराज कृत है, तब तृतीय काण्ड की टीका भूतिराज - तनय हेलाराज निर्मित है, ऐसा प्रत्येक समुद्देश की अन्तिम पुष्पिका से ज्ञात होता है ।
मूल ग्रन्थ कर्त्ता भर्तृहरि ने प्रथम काण्ड के अन्त में अपना नाम "हरिवृषभ" लिखा है, परन्तु द्वितीय तृतीय काण्डों की समाप्ति में "भर्तृहरि” नाम का निर्देश होने से, वाक्य पदीय ग्रन्थ का कर्त्ता भर्तृहरि ही है इसमें शंका को स्थान नहीं । भर्तृहरि ने अपने समय के विषय में कुछ भी सूचन नहीं किया, इससे इनका सत्ता- समय क्या होगा, यह निश्चित रूप से कहना कठिन है, चीनी यात्री ह्व ेनसांग ने अपने भारत यात्रा विवरण में एक स्थान पर व्याकरण के प्रसिद्ध विद्वान भर्तृहरि का नाम निर्देश किया है, इससे अनुमान होता है कि त्सांग के भर्तृहरि " वाक्य पदीय " निबन्ध के कर्त्ता हरि ही होने चाहिए, यदि उक्त अनुमान ठीक हो तो भर्तृहरि का सत्ता समय विक्रम की सातवीं शती का पूर्वार्ध मानना ठीक होगा ।
प्रस्तुत ग्रन्थ के टीकाकार पुण्यराज तथा हेलाराज ने भी अपने सत्ता- समय के सम्बन्ध में कुछ भी निर्देश नहीं किया, अतः टीकाकारों के सत्ता समय आदि के सम्बन्ध में कुछ भी कहना साहस मात्र होगा ।
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