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१८२ ते वाचना तणइ अधिकारि प्रथम वाचनायइ श्रीमहावीर तणा कल्याणक संक्षेप वाचनाइय बाच्या ॥"
"बीजी वाचनाइ विस्तर पणइ श्री महावीर तणा च्यवन कल्याणक-गभोपहार कीधा तद् अनंतर त्रिसला क्षत्रियाणी जिम चवदह सुपिना दीठा ते किणइ एक प्रकारइ करी वखाणइ ।"
उपर्युक्त मंगलाचरण और उपोद्घात करने के बाद कल्पसूत्र की शुरुयात होती है, प्रथम सूत्र और ऊपर अर्थ लिखकर त्रिशला के गर्भ संक्रमण तथा चौदह स्वप्नों का वर्णन लिखा है और त्रिशला के स्वप्न जागरण की हकीकत देकर उपसंहार के बाद प्रथम व्याख्यान समाप्त किया है।
प्रथम व्याख्यान का उपसंहार नीचे दिया जाता है
"हिब आगइ वाचना संध्याकालइ हुस्सइ, निर्विघ्न पणइ जे अाराधीय इति, विधि चैत्यालय पूज्यमान श्री पार्श्वनाथ तणइ प्रसादि, गुरु अनुक्रमइ युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि, श्रीजिनसिंह सरि, वर्तमान श्री जिनराजसूरि तणी आज्ञा वहमान श्री संघ प्राचन्द्रार्क जयवंत प्रवर्तइ, इति तृतीय कन्य व्याख्यानं समाप्तं"। यहाँ तृतीय व्याख्यान समाप्त होने की बात लिखी है पर वास्तव में प्रभात का एक ही व्याख्यान समाप्त हुआ है, तीन अधिकार होने के कारण तृतीय वाचना की समाप्ति लिखी है।
अब शाम के व्याख्यान का आरम्भ-प्रथम व्याख्यान के प्रारम्भ में दिए गए दस पद्यों को मंगल के रूप में पढ़कर किया है । प्रथम व्याख्यान का मंगल समाप्त होने के बाद, व्याख्यान का जो उपोद्घात लिखा था, उसी प्रकार से प्रथम व्याख्यान में कही हुई खास बातों का निर्देश करके किया है।
दूसरे व्याख्यान में स्वप्न पाठकों को बुलाने आदि का अधिकार लिखा है, इस दूसरे व्याख्यान की समाप्ति निम्न प्रकार के शब्दों में की है
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