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________________ १५३ गच्छीय आचार्य श्री महेन्द्रसिंह सूरि ने जिनवल्लभगणि द्वारा गर्भापहार का कल्याणक माने जाने का समर्थन किया है, इससे ज्ञात होता है कि जिनवल्लभ गणि ने गर्भापहार को कल्याणक प्रमाणित करने का ऊहापोह किया होगा, और अपने अनुयायियों को गर्भापहार के दिन धार्मिक अनुष्ठान करने का उपदेश भी अवश्य दिया होगा पर श्री जिनपतिसूरि और इनके शिष्यों ने इसका विशेष समर्थन और प्रचार किया है । जिनप्रभसूरि इस पंजिका के निर्माण समय में अधिक प्रवस्थावाले न होने चाहिए, ऐसा इस टीका के कई उल्लेखों से ज्ञात होता है, रत्नराशि की व्याख्या आप " रत्नोच्चयो - रत्नभृतं स्थालं" ऐसी करके आगे जाकर ठिकाने आते हैं और "रत्ननिकराणां राशिरुच्छ्रयः समूह विशेष : " इस प्रकार अपनी पूर्व भूल को सुधारते हैं । भगवान् महावीर के निर्वाण समय पर उनके जन्मनक्षत्र पर आने वाले भस्म राशि ग्रह के संबंध में आप लिखते हैं-- “ क्षुद्रात्मा क्रूरस्वभावो भस्मराशि स्त्रिशत्तमो ग्रहोद्वि वर्ष सहस्रस्थितिरेकराशी " अर्थात् - 'क्षुद्र प्रकृति और क्रूरस्वभाव वाला तीसवां भस्मराशिग्रह जो एक राशि पर दो हजार वर्ष तक रहता है, भगवान की जन्म राशि पर आया जबकि कल्पसूत्र मूल में भस्म राशि की एक नक्षत्र पर दो हजार वर्ष की स्थिति होने का लिखा है, इसका कारण जिनप्रभ की असावधानी के सिवा और क्या हो सकता है ? हस्तिपाल राजा की सभा में अंतिम वर्षा चातुर्मास्य में कार्तिक दि अमावस्या की रात्रि में पर्यंकासन से बैठे हुए भगवान् महावीर ने पुण्य का फल बताने वाले ५५ अध्ययन और पाप का फल बताने वाले ५५ अध्ययन सभा को सुनाये, फिर बगैर पूछे ३६ प्रश्नों के उत्तर देकर अन्त में प्रधान नामक अध्ययन का निरूपण करते हुए आप निर्वाण प्राप्त हुए । इस विषय के कल्पसूत्र में मूल शब्द निम्नलिखित हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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