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जेणं अणिंदियंगे, जेण अरहे, जेणगयरागे, जेणगयदोसे, जेण निठियमोह मिछत्तमलकलंके, जेणं उक्संते, जेण सुविण्णायजटिठतिए, जेणं सुमहावेरगमग्गमल्लीणे, जेण इत्थिकहा पडिणीए, जेण भत्तकहा पडिणीए जेण तेणकहा पडिणीए, जेण रायकहाडिणीए, जेण जणायकहा पडिणीए, जेणं अच्चतमण कंपसीले, जेण परलोगपचवायभीरू, जे ण कुसीलपडिणीए, जेण' विएणायसमयसम्भावे, जेण गहियसमयपेयाले, जेणं अहाणिसाण समयं ठिए खंतादिहिसालक्खणदसविहे समणधम्मे।"
अर्थ---'भगवन्' किस प्रकार के गुण युक्त गुरु पर गच्छ को स्थापित करना चाहिए ? भगवान् ने कहा--जो सुव्रत, सुशील, दृढव्रत, दृढचारित्र अनिन्दितांग, योग्य, रागद्वेषरहित मोह मिथ्यात्व के मल कलंक से मुक्त है, शान्तप्रकृति, जगत्स्थिति को यथार्थ जानकर महान् वैराग्य मार्ग में लीन रहने वाला, स्त्रीकथा, भक्तकथा, चौरकथा, राजकथा और देशकथा के विरोधी, अत्यन्त दयालु, परलोक के अपाय से डरने वाले, कुशीलियों के विरोधी, सिद्धान्त का सद्भाव जाननेवाले, आगम के पारंगत, रात दिन क्षान्त्यादि अहिंसालक्षण दशविध श्रमणधर्म में स्थित हों इत्यादि गुणगणविभूषित गुरु पर गच्छ को निर्भर करना चाहिए, गच्छपति बनने वाले गुरु में कैसे गुण होने चाहिए इसका ऊपर संक्षेप में सार लिखा है, वर्णन तो बड़ा विस्तृत है पर हमने नमूना मात्र बताया है, गच्छपति बनने की इच्छा रखने वाले हमारे भाइयों को महानिशीथ के छठवें अध्ययन का यह भाग पढ़ना चाहिए ताकि उन्हें अपनी योग्यता का अनुभव हो सके।
कल्की और आचार्य श्रीप्रम"से भयवं केतियं कालं जाव एसा आणा पवेश्या, गोयमा जाव णं महावरो (महावयघरे) महासत्ते महाणभागे सिरिप्पमे
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