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________________ निबन्ध-निचय : ४६ भट्टारक विद्यानन्दी के देशविरति शिष्य थे। श्रुतसागर उस समय के अच्छे विद्वान् थे इन्होंने कोई पाठ ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखी थीं। इसके अतिरिक्त अनेक प्राकृत, संस्कृत भाषा के ग्रन्थों का निर्माण किया था। उन्हीं में से "सिद्ध चक्र महापूजा" एक अनुष्ठान ग्रन्थ था; इसका दूसरा नाम सिद्धचक्राष्टक वृत्ति" भी लिखा है। इससे मालूम होता है, इन्होंने “सिद्ध चक्र" की पूजा पर आठ पद्य लिखकर उनके विवरण रूप में यह "पूजा-विधान" तय्यार किया होगा । श्रुतसागर का सत्ता-समय विक्रमीय १६ वीं सदी का उत्तरार्ध और १७ वीं का प्रारम्भ था। इनके अनेक-ग्रन्थ-पाज भी उपलब्ध होते हैं, परन्तु “सिद्धचक्र महापूजा" कहीं मिलती है या नहीं, यह कहना कठिन है। भट्टारक विद्यानन्दी श्रुतसागर अादि का विहार दक्षिण गुजरात में होता था भट्टारक विद्यानन्दी सूरत की गद्दी के प्राचार्य थे । खम्भात के निकटवर्ती गन्धार बन्दर में रहकर श्रुतसागर ने एक ग्रन्थ का निर्माण किया था, इससे यह भी पाया जाता है कि विद्यानन्दी भट्रारक तथा उनके शिष्य श्रतसागर सूरि खासकर दक्षिण गुजरात में विचरते थे । अहमदाबाद में प्राचार्य श्री नीतिसूरिजी के भण्डार में से प्रस्तुत “सिद्धचक्र-यन्त्रोद्धार-पूजन विधि" की प्रति मिलने की बात प्रस्तावना में कहीं गई है, इससे सम्भव है, विधि की यह पुस्तक प्राचार्य श्रुतसागर की उक्त "सिद्ध चक्र-महापूजा" को ही किसी श्वेताम्बरीय विद्वान् द्वारा विकृत करके श्वेताम्बर सम्प्रदाय को मानी हुई प्रति होगी। कुछ भी हो, “पूजन विधि" का मूलका कोई दिगम्बर विद्वान् था, इसमें विशेष शंका नहीं है । ५. यन्त्र के पंचम वलय में दिये हुए "सिद्ध चक्र'' के अधिष्ठायकों के नामों में अनेक नामोंवाले-देवों को श्वेताम्बर परम्परा “सिद्धचक्र" के अधिष्ठायक नहीं मानती; जैसे-"विमलवाहन” श्वेताम्बर परम्परा में "सिद्धचक्र" के अधिष्ठायक होने की मान्यता नहीं है; ::धरणेन्द्र:; भी भगवान् पार्श्वनाथ का भक्त माना गया है । "सिद्धचक्र' का नहीं; : 'कपर्दियक्ष'' शत्रुञ्जय तीर्थ का रक्षक होने की श्वेताम्बरीय मान्यता है; सिद्धचक्राधिष्ठायक होने की नहीं। "शारदाः, यह नाम सरस्वती के पर्यायों में प्रयुक्त अवश्य हुअा है; परन्तु - सिद्धचक्र:; के साथ इसका क्या सम्बन्ध है; इसका कोई पता नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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