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________________ धन्यवाद : मांडवला नगरनिवासी श्रीमान् कुन्दनमलजी, छगनराजजी, भंवरलालजी, जीतमलजी, पारसमलजी, गणपतराजजी, थानमलजी, भंवरलालजी, रमेशकुमारजी पुत्र पौत्र श्री तलाजी दांतेवाडिया योग्य : आप श्रीमान् समय २ पर अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग करते रहते हैं. ज्ञान-प्रचार के लिए भी आप अपने द्रव्य का व्यय करने में पीछे नहीं रहते । दो वर्ष पहिले पू० पन्यासजी महाराज श्री कल्याणविजयजी गणि, श्री सौभाग्यविजयजी, मुनि श्री मुक्तिविजयजी का मांडवला में चातुर्मास्य हुआ तब पन्यासजी महाराज को ग्रन्थ तैयार करते देखकर ग्रन्थ का नाम पूछा। महाराज ने कहा-३ ग्रन्थ तैयार हो रहे हैं। आपने ग्रन्थों के नाम पूछे, तब महाराज ने कहा : १ पट्टावली पराग, २ प्रबन्धपारिजात और ३ निबन्ध-निचय नामक ग्रन्थ तैयार हो रहे हैं। आपने तीनों ग्रन्थों के नाम नोट कर लिये और कहा : ये तीनों ग्रन्थ हमारी तरफ से छपने चाहिये । महाराज ने वचनबद्ध न होने के लिए बहुत इन्कार किया पर आप सज्जनों के अत्याग्रह से पन्यासजी महाराज को वचनबद्ध होना पड़ा। आपकी इस उदारता और ज्ञान-भक्ति को सुनकर हमको बहुत प्रानन्दाश्चर्य हुमा। आपकी इस उदारता के बदले में हम आपको धन्यवाद देने में गौरव का अनुभव करते हैं। हम हैं आपके प्रशंसक। शाह मुनिलाल थानमलजी एवं समिति के अन्य सदस्य। [ सोन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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