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________________ निबन्ध-निचय : ३०७ "कथावस्तु वसुदेवहिण्डी और महापुरुषचरित्र" प्रादि प्राचीन प्राकृत ग्रन्थों आधार से लिया है । यह बात "हरिवंश के कथावस्तु का श्राधार" नामक शीर्षक के नीचे लिखी जा चुकी है । (५) जिनसेन के पूर्ववर्ती विद्वान् : : : आचार्य जिनसेनसूरि ने अपने पुराण के प्रथम सर्ग में अपने पूर्ववर्ती कतिपय विद्वानों का स्मरण किया है, जिनमें समन्तभद्र, सिद्धसेन, देवनन्दी, वज्रसूरि, महासेन, शान्तिषेण, प्रभाचन्द्र, प्रभाचन्द्र के गुरु कुमारसेन, वीरसेन गुरु और जिनसेन स्वामी आदि प्रमुख हैं । इनमें प्राचार्य समन्तभद्र, सूक्तिकार सिद्धसेन, व्याकरण ग्रन्थों के दर्शी देवनन्दी, वज्रसूरि आदि के नाम आने स्वाभाविक हैं । क्योंकि ये सभी आचार्य हरिवंशकार जिनसेन के निसन्देह पूर्ववर्ती थे, परन्तु कतिपय नामों का इस पुराण में स्मरण होना शंकास्पद प्रतीत होता है । कुमारसेन, वीरसेन, महापुराण के कर्ता "जिनसेन और प्रभाचन्द्र" का नाम "हरिवंश पुराण' में आना एक नयी समस्या खड़ी करता है । क्योंकि "महापुराण" के कवि जिनसेन अपने ग्रन्थ में हरिवंशपुराणकार जिनसेन की याद करते हैं, तब "हरिवंश पुराण" में पुन्नाट संघीय कवि जिनसेन, जिनसेन स्वामी की कीर्ति "पाश्वभ्युदय" नामक काव्य में करते हैं। इसी प्रकार "हरिवंशपुराण" में "न्यायकुमुदचन्द्रोदय'" के कर्ता प्रभाचन्द्र और उनके गुरु प्राचार्य कुमारसेन का नामोल्लेख होना भी समयविषयक उलझन को उत्पन्न करने वाला है । भट्टारक वीरसेन ने भी हरिवंशपुराणकार आचार्य जिनसेन का अपने ग्रन्थ में स्मरण किया है, इसी प्रकार आचार्य वीरसेन ने अपने ग्रन्थ में प्रभाचन्द्र का नाम निर्देश किया है और प्रसिद्ध कवि " धनंजय" की " नाममाला" का अपने ग्रन्थ में एक पद्य उद्धृत किया है । आचार्य प्रभाचन्द्र और कवि धनज्जय मालवा के राजा भोज की राजसभा के पण्डित थे । इन सब बातों पर विचार करने से प्राचार्य वीरसेन भट्टारक, हरिवंश पुराणकार प्राचार्य जिनसेन आदि के सत्ता- समय की वास्तविकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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