________________
कर्ता : श्री विद्यानन्दी
श्री तत्त्वार्थ-श्लोकवार्तिक
तत्त्वार्थसूत्र पर रची गयी अनेक टीकाओं में से विक्रमीय एकादशवीं शताब्दी के पूर्वार्ध जात आचार्य विद्यानन्दी की "तत्त्वार्थसूत्र-श्लोकवार्तिकालंकार" का तीसरा नम्बर है। यह टीका भाष्य के रूप में लिखी गई है। तत्त्वार्थ के मूल सूत्रों का विवरण लिखने के बाद उसी का सार प्रायः कारिकाओं में दिया गया है।
टीका ग्रन्थ का आधे से अधिक भाग प्रथम अध्याय के पांच आह्निकों में पूरा किया है। शेष टीका ग्रन्थ दूसरे अध्याय के तीन आह्निकों और शेष आठ अध्यायों के दो दो आह्निक कल्पित करके पूरा किया है।
टीकाकार ने अपनी टीका में पूर्ववर्ती अनेक ग्रन्थकारों तथा विद्वानों का नाम निर्देश किया है।
जैन विद्वानों के नामों में समन्तभद्र का नाम निर्देश मात्र है। तब अकलंकदेव, कुमारनन्दी, श्रीदत्त के नाम वादी के रूप में उल्लिखित हैं। आश्चर्य है देवनन्दी सर्वार्थसिद्धि टोका के कर्ता माने जाते हैं, परन्तु ग्रन्थ भर में देवनन्दी का नाम निर्देश कहीं नहीं मिलता। अकलंकदेव ने "सिद्धिविनिश्चय" की एक कारिका में सिद्धसेन तथा समन्तभद्र नामों के साथ देवनन्दी का भी नाम निर्दिष्ट किया है। परन्तु तत्त्वार्थ राजवार्तिक में भी देवनन्दी का उल्लेख नहीं है।
___जैनेतर विद्वानों में से टीकाकार ने उद्योतकर, शबर, भर्त हरि, वराहमिहिर, प्रभाकर भट्ट, धर्मकीर्ति और प्रज्ञाकर गुप्त आदि के अनेक बार नाम निर्देश किये हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org