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________________ २४६ : निबन्ध-निचय व्यवस्था आदि करने वाले के गुणों का ।" लेखकों ने गोलमाल बात लिखकर चैत्य- द्रव्यादि धन-सम्पत्ति की व्यवस्था करने वालों को भी इस योग्यता में शामिल करने की चेष्टा की है, परन्तु इस प्रकार करना प्रामाणिकता से विरुद्ध है । पूर्वकाल में न तो धार्मिक क्षेत्रों में इतना खर्च था, न उन क्षेत्रों में आज की तरह लाखों की सम्पत्ति का संचय ही किया जाता था । चैत्य की प्रतिष्ठा के समय चैत्यकारक स्वयं तथा उसके इष्टमित्रादि अपनी तरफ से अमुक द्रव्य इकट्ठा करके श्रावश्यकता के समय चैत्य में खर्च करने के लिए एक छोटा फण्ड कायम कर लेते थे, जो "नीवि, मूलधन अथवा समुद्रक" इन नामों से व्यवहृत होता था । इस समुद्रक का धन चैत्य के रिपेयरिङ्ग, जीर्णोद्धार अथवा देश में विप्लव होने पर गाँव छोड़कर चले जाने के समय वेतन से पूजक को रखकर प्रतिमा पुजाने के काम में खर्च किया जाता था, इसलिए उसकी रक्षा की विशेष चिन्ता ही नहीं होती थी । धन को इकट्ठा करने वाला गृहस्थ ही बहुधा उस समुद्रक को सम्भाले रखता था अथवा “गोष्ठिक मण्डल" के हवाले कर देता था, जिससे उसके नाश की आशंका ही नहीं रहती और न प्रमुक योग्यता वाले मनुष्य की खोज करनी पड़ती । जैन संघ के बंधारण की रूपरेखा "लिखने वाले लेखक युगल में से एक लेखक की इच्छा इस " रूपरेखा" के सम्बन्ध में मेरी सम्मति जानने की है । यह बात जानने के बाद मैंने "बंधारण की रूपरेखा" की समीक्षा के रूप में उपर्युक्त छोटा-सा विवरण लिखा है, जिसके अन्तर्गत जैन संघ के मौलिक नियमों का भी दिग्दर्शन कराया गया है । वास्तव में वर्तमान जैन संघ की कतिपय रूढ़ियों को लक्ष्य में लेकर लेखकों ने यह रूपरेखा खींची है, जो किसी भी समय के जैन संघ की व्यवस्था के लिये उपयोगी नहीं है । जैन संघ की व्यवस्था के लिये इस प्रकार की गीतार्थ, अल्पश्रुत साधु और भिन्न-भिन्न बाड़ों में रहने वाले गृहस्थों से बनी हुई इस प्रकार की शासन संस्था कभी सफल नहीं हो सकती । मेरा स्पष्ट मत तो यह है कि यदि जैन संघ को दृढ़बल बनाना है तो श्रमरण-श्रमणियों को गृहस्थों का प्रतिपरिचय और प्रतिभक्ति का मोह छोड़कर श्रमण श्रमणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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