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निबन्ध-निचय
(१) शासन-रक्षक देव और देवियाँ :
लेखक मानते हैं कि प्रत्येक तीर्थङ्कर के शासन का रक्षक एक देवदेवी युगल होता है, जैसे ऋषभदेव के शासन का रक्षक “गोमुख यक्ष चक्रेश्वरी देवी।" लेखकों का यह कथन जैनागम से विरुद्ध है। जैनागमों तथा उसके प्राचीन अंगों में इन देव-देवियों का नाम निर्देश तक नहीं है। सर्वप्रथम "निर्वाणकलिका" और उसके बाद "प्रवचनसारोद्धार" नामक प्रकरण में ये देव-देवी युगल दिखाई देते हैं, परन्तु वे शासनरक्षक के रूप में नहीं किन्तु तीर्थङ्करों के "चरणसेवकों" के रूप में बताये गये हैं। 'प्रवचनसारोद्धार' ग्रन्थ के बाद के तीर्थङ्कर-चरित्र-ग्रन्थों में भी उन यक्ष-यक्षिणियों के नाम मिलते हैं। परन्तु उन्हें 'शासन-रक्षक' वा 'प्रवचनरक्षक' कहना भूल है। प्राचीन काल में जब सपरिकर जिनमूर्तियां प्रतिष्ठित होती थीं, उस समय इन देव-युगलों को जिनमूर्ति के आसन के निम्न भाग में दिखाया जाता था। परिकरपद्धति हट जाने के बाद उस प्रकार के सिंहासन भी हट गए और मन्दिरों में से इन देव-युगलों का अस्तित्व भी मिट सा गया था, परन्तु गत शताब्दी से इन देव-युगलों की पृथक् मूर्तियां बनवाकर मन्दिरों में बैठाने की प्रथा चल पड़ी है, जो शास्त्रीय नहीं है , इन देवयुगलों का आवश्यक-नियुक्ति में निरूपण बताना लेखकों की आवश्यक-नियुक्ति से अनभिज्ञता सूचित करता है। आवश्यक-नियुक्ति में इन देव-देवियों का निरूपण तो क्या इनका सूचन तक नहीं है।
जैन प्रतिष्ठाकल्पादि ग्रन्थों में "पवयणदेवया; सुयदेवया" अथवा "शासन देवया" नाम से जिन देवताओं के कायोत्सर्ग अथवा स्तुतियाँ बताई हैं, वे वास्तव में जिनप्रवचन पर भक्ति रखने वाली देवियों के पर्याय नाम हैं। कहीं-कहीं तीर्थङ्कर-विशेष पर भक्ति रखने वाले अजैन देवों को भी शासन देव के नाम से निर्दिष्ट किया है, जैसे “सर्वानुभूति-यक्ष", "ब्रह्मशान्ति देव" इत्यादि। परन्तु इनके जैनशासन-देव होने का यह तात्पर्य नहीं है, कि ये जिनप्रवचन अथवा जिनशासन के अधिष्ठायक हैं।
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