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________________ निबन्ध-निचय : २१५ सम्बन्ध में भी समझ लेना चाहिए । ज्योतिष का रहस्य जानने वाले और अनभिज्ञ प्रतिष्ठाचार्य के हाथ से एक ही मुहूर्त में होने वाली प्रतिष्ठाओं को सफलता में अन्तर पड़ जाता है । जहां शुभ लग्न शुभ षड्वर्ग अथवा शुभ पंचवर्ग में और पृथ्वी अथवा जल तत्त्व में प्रतिष्ठा होती है वहाँ वह अभ्युदय-जनिका होती है, तब जहां उसी लग्न में नवमांश, षड्वर्ग, पंचवर्ग तथा तत्त्वशुद्धि न हो ऐसे समय में प्रतिमा प्रतिष्ठित होती है तो वह प्रतिष्ठा उतनी सफल नहीं होती। (६) प्रतिष्ठा के उपक्रन में अथवा बाद में भी प्रतिष्ठा-कार्य के निमित्तक अपशकुन हुआ करते हों तो निर्धारित मुहूर्त में प्रतिष्ठा जैसे महाकार्य न करने चाहिए, क्योंकि दिनशुद्धि और लग्नशुद्धि का सेनापति 'शकुन' माना गया है। सेनापति की इच्छा के विरुद्ध जैसे सेना कुछ भी कर नहीं सकती, उसी प्रकार शकुन के विरोध में दिनशुद्धि और लग्नशुद्धि भी शुभ फल नहीं देती। इस विषय में व्यवहार-प्रकाशकार कहते हैं "नक्षत्रस्य मुहूर्तस्य, तिथेश्च करणस्य च । चतुर्णामपि चैतेषां शकुनो दण्डनायकः ॥१॥" अर्थात्-नक्षत्र, मुहूर्त, तिथि और करण इन चार का दण्डनायक अर्थात् सेनापति शकुन है। प्राचार्य लल्ल भी कहते हैं "अपि सर्वगुणोपेतं, न ग्राह्यं शकुनं विना । लग्नं यस्मानिमित्तानों, शकुनो दण्डनायकः ।।१।।" अर्थात्-भले ही सर्व-गुण-सम्पन्न लग्न हो पर शुभ शकुन बिना उसका स्वीकार न करना। क्योंकि नक्षत्र, तिथ्यादि निमित्तों का सेनानायक शकुन है। यही कारण है कि वजित शकुन में किये हुए प्रतिष्ठादि शुभ कार्य भो परिणाम में निराशाजनक होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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