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१५४ :
अशुद्ध पाठ
राजासंनिवेशानाम्
श्री राजाधिपानां
श्री राजसंनिवेशानां
श्री पीर मुख्खाणां मस्तकेदातव्यमिति भवन्तु लोका:
निबन्ध-निचय
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शुद्ध पाठ
राज्यसंनिवेशानाम् राज्याधिपानां
राज्यसंनिवेशाना
श्री पुरमुख्यारणां मस्तके प्रदद्यादिति
भवतु लोक:
प्रतिक्रमण प्रबोध टीका का प्रथम भाग प्रकाशित होने के पूर्व तीसरे वर्ष में यह शुद्धिपत्रक मेहसाना के संस्करण के आधार से तैयार किया था । उक्त शुद्धि-पत्रक की ५६ अशुद्धियों में से कारों ने सुधारी हैं, वैसे कुछ नयी घुसेड़ी हैं । प्रतिक्रमण में कुल ६४ अशुद्धियों का अङ्क आता है ।
कुछ प्रबोध टीकाप्रबोध टीका वाले
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