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१५२ :
प्रशुद्ध पाठ
ऊहि
मणुव्वयाणं उवभोग-परीभोगे
मज्झ
निंदिय
एवमह
दुगंधि
भुवन
भुवरण
भुवन
पनरससु
केवि
साहु
पडिग्गद्वारा
'व्वयधारा
सीलिंगधारा
निर्वृत्ति
दृष्टिन
मुसुमरणू
श्रलिभहो
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निबन्ध-निचय
वंदित्तु में :
भवनदेवता स्तुति में :
श्रड्ढाइज सु में :
लघुशान्ति में :
शुद्ध पाठ
चउकसाय में :
चह
मरणुवयाणं
उभोगे - परिभोगे
मज्झं
निदिउं
एवं मइ
दुगंछि
भवन
भवरण
भवन
-
पन्नरससु
केद
साहू
पडिग्गहधरा
Paaraरा
सोलंगधरा
निर्वृति
दृष्टीनi
भ रहेसर बालुबलि सम्भाय में :
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मुसुमरण
थूलभद्दो
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