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१५. :
निबन्ध-निचय
का संभव है, इसी प्रकार प्रतिक्रमण सूत्र का विस्तृत विवरण लिखवा कर महेसाना श्री जनश्रेयस्कर मण्डल ने बड़े चोपड़े के रूप में प्रकाशित किया है उसमें भी हमने जैन शैली के विरुद्ध कितनी ही भूलें देखी हैं। इसलिए इन दोनों पुस्तकों के भाषा-विवरणों में परिमार्जन करना चाहिए, अन्यथा इनमें रही हुई भूलें जैन शैली का रूप धारण करेंगी और पढ़ने वाले भ्रमणा में पड़ेंगे।
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