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निबन्ध-निचय
होता और कम मूल्य में इसका सर्वत्र प्रचार हो जाता, पर जो काम हो घुका है उसके विषय में अब ज्यादा लिखना आवश्यक नहीं है।
अब हम अपने प्रतिक्रमण सूत्र' में तथा प्रतिक्रमण में बोली जाने वाली स्तुतियों स्तवनों आदि में घुसी हुई तथा आज पर्यन्त चली आती अशुद्धियों की सूची देकर इस चर्चा को समेट लेंगे ।
लगभग तीन वर्ष पहिले हमने महेसाना के संस्करण को आधार मानकर आवश्यक सम्बन्धी सूत्रों का एक "शुद्धिपत्रक" तैयार किया था और उसको छपवाकर प्रकट करने का भी विचार किया था, पर इसके बाद थोड़े ही समय में "प्रबोध टीका" के प्रथम भाग के प्रकाशन की खुशी में बम्बई में जैनों की सभा हुई और इस कार्य में लगे हुए कार्यकरों को अभिनन्दन दिये गये। हमें लगा कि इस घटना से "प्रतिक्रमण सूत्र" का शुद्ध संस्करण प्रकाशित होने में अब विलम्ब न होगा। अब हमें शुद्धिपत्रक प्रकट करने की आवश्यकता ही न रहेगी। हमने प्रबोध टीका वाले संस्करण का प्रथम भाग मंगवाकर दृष्टिगोचर किया तब कितनी ही भूलें उसमें सुधरी हुई मालूम हुई तब कुछ नई भूलें भी दृष्टिगत हुई। हमने सम्पूर्ण ग्रन्थ छप जाने के बाद ही इसके सम्बन्ध में कुछ लिखने का निर्णय किया। गत चातुर्मास्य में अन्तिम भाग प्रकाशित होते ही उसे मंगाकर ग्रन्थ का मूल पढ़ा और दृष्टि में आयी हुई भूलों की यादी की।
___ यहाँ हम "प्रबोध टीका" के संस्करण की "अशुद्धियों" का "शुद्धिपत्रक' देते हैं जिसमें कितनी प्रचलित भूलें रहीं तथा कितनी नई भूलें घुसीं यह जान सकेंगे।
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