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________________ निबन्ध-निचय जाती, माघमाला नहीं पहनी जाती, जिनमन्दिर में खान-पान, पेशाब-टट्टी, थूकना, स्नान, पग धोना, मालिश करना नहीं होता। न रहस्यजनक क्रीड़ा होती है, न होड़ बदी जाती है, न कुश्ती की जाती है, न जुगार खेला जाता है, न देव द्रव्य खाया जाता है। परस्पर एक दूसरे की ईर्षा नहीं की जातो, न श्रावक द्वारा प्रतिष्ठा कराई जाती है। किसी प्रकार के आयुध के साथ श्रावक चैत्य में प्रवेश नहीं कर सकता। अनुचित गीत, वादित्र, नृत्य, नाटक नहीं होते। शास्त्र-विरुद्ध धर्मदेशना नहीं होती, उन्मार्ग स्थित साधुओं को वन्दनादि नहीं किया जाता है, विधिचैत्य में दुष्ट वचन नहीं बोला जाता, दूसरा भी गड्डरिया प्रवाहपतित पागम और आचरणा से विरुद्ध दोषवर्द्धक और गुणघातक कार्य जहाँ पर न किये जाते हों उसे गुण वृद्धि करने वाला तीर्थङ्कर गणधर-सम्मत स्वर्गापवर्ग जनक "आयतन" कहते हैं। ऊपर का सारांश खरतरगच्छ वाले ने निम्नलिखित पद्य से लिया है "अत्रोत् सूत्र जनक्रमो न च न च स्नात्रं रजन्यां सदा, साधूनां ममताश्रयो न च न च स्त्रीणां प्रवेशो निशि । जाति-ज्ञातिकदाग्रहो न च न च श्राद्धेषु ताम्बूलमित्याज्ञात्रेयमनिश्रिते विधिकृते श्रीजैनचैत्यालये ॥" पायतन से विपरीत ज्ञान, दर्शन, चारित्र के गुणों का घात करने वाला जो स्थानक हो उसको "अनायतन" समझना चाहिए। मोक्षार्थी सुसाधु सुसाध्वी श्रावक श्राविका जनों के लिए अनायतन विशुद्ध भाव से वर्जनीय है, रागद्वेष के कारण से नहीं। विधिचैत्य में बर्तने के लिए जिनवल्लभ गणी और जिनदत्तसूरिजी ने जो जो नियम संघपट्टक, चर्चरी, धर्मोपदेश रसायन, कालस्वरुप कुलक आदि में लिखे हैं उन्हीं का प्रस्तुत प्राकृत पाठ में समावेश किया गया है। इस विषय में जिन सज्जनों को शंका हो वे उक्त ग्रन्थों को पढ़कर के निर्णय कर सकते हैं कि मेरा कथन कहां तक ठीक है। इस प्रकार के कल्पित पाठों को अन्यान्य सूत्रों के नाम पर चढ़ाकर जिनप्रतिमाधिकार के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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