SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निबन्ध-निचय पूजा के प्रसंग पर लेखक ने जाई, जूही, चमेली, गुलाब आदि वर्तमान कालीन पुष्पों की एक बड़ी सी नामावलि लिख दी है। "प्रतिष्ठा विधि" के साथ "वार" शब्द का प्रयोग, पुष्पावलि में "गुलाब' आदि नामों का प्रयोग इत्यादि बहुत सी बातों को देखकर हमारे हृदय में यही निर्णय हा, कि किसी साधारण पढ़े लिखे आदमी ने इन शब्दों का सन्दर्भ बना दिया है, जिसमें विद्वत्ता का तो प्रभाव है ही, साथ में ऐतिहासिक ज्ञान का भी लेखक ने अपने ही शब्दों से प्रभाव सूचित कर दिया है। इस "पइन्नय" के सम्बन्ध में हमारा निश्चित मत है कि किसी बीसवीं शती के व्यक्ति ने इस "पइन्नय" द्वारा मूर्ति-पूजा विरोधियों को मूर्ति-पूजा मनाने की चेष्टा को है, जो सफल नहीं हुई । (१३) वन्दन-प्रकीर्णक (वन्दरण-पइन्नय) : "वन्दन पइन्नय” भी कतिपय प्राकृत गाथाओं का सन्दर्भ है। इसके लेखक ने इसको भद्रबाहु स्वामी की कृति बताया है, पर वास्तव में “पूजापइन्नय" और "वन्दण-पइन्नय" ये दोनों एक ही लेखक के सन्दर्भ हैं, ऐसा इनके निरूपण से प्रतीत होता है। "देववन्दण पइन्नय" में लेखक ने देव वन्दन की विधि का निरूपण किया है, इसमें से चतुर्थ स्तुति का प्रसंग हटा दिया है। इससे ज्ञात होता है कि यह “पइन्नय" किसी “त्रिस्तुतिक" लेखक की कृति होना चाहिए। "पइन्नय” की भाषा बिल्कुल लचर और खींचतान कर जोड़े हुए पदों का भान कराती है। वास्तव में यह “पयन्ना" तथा इसके पहले का "पूयापयन्ना" ये दोनों बीसवीं शताब्दी की कृतियां हैं, जिन्हें प्राचीन ठहराने की गरज से श्रुतधर श्री भद्रबाहु स्वामो के नाम पर चढ़ाकर लेखक ने उनका अपमान किया है। (१४) जिनप्रतिमाधिकार २ : "जिनप्रतिमाधिकार" नामक दो ग्रन्थ हमारे शास्त्रसंग्रह में संग्रहीत हैं। दोनों हस्तलिखित हैं। एक का पोथी नं० ३१० हैं और दूसरे का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy