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________________ निबन्ध-मिचय (४) व्यवहार-चूलिका : ___उक्त नाम की एक लघु कृत्रिम कृति भी हमारे समाज में अस्तित्व धराती है। "उपदेश-प्रासाद" नामक अर्वाचीन ग्रन्थ के एक व्याख्यान में यह चूलिका उपलब्ध होती है, जिसमें देवद्रव्यादि भोगने वालों की चर्चा है। दूसरी भी अनेक वर्तमान प्रवृत्तियों का इसमें उल्लेख मिलता है । मालूम होता है कि बारहवीं शती में प्रकट होने वाले नवीन गच्छों के प्रवर्तकों में से किसी ने चूलिका का निर्माण करके चैत्यवासियों को मीचा दिखाने की चेष्टा की है। (५) बंग-चूलिया : हमारे शास्त्रभण्डारों में “वंग-चूलिया" नामक एक अध्ययन उपलब्ध होता है। "वंग-चूलिया” की गणना सूत्रों में की जाती है, परन्तु प्राचीन हस्तलिखित पोथियों में “वंग-चूलिया" दृष्टिगोचर नहीं होती। इतना ही नहीं किन्तु विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी तक की प्राचीन किसी भी ग्रन्थसूची में इसका नामोल्लेख तक नहीं मिलता। न १७वीं शताब्दी तक के किसी ग्रन्थ प्रकरण में इसके अस्तित्व का प्रमाण ही मिलता है । "वंग-चूलिया" का दूसरा नाम "सुयहीलुप्पत्ति-अज्झयण" लिखा गया है। इसमें बाईस समुदाय के आदि पुरुषों की कल्पित उत्पत्ति का वर्णन चतुर्दश पूर्वधर यशोभद्र सूरि द्वारा भद्रबाहु के शिष्य अग्निदत्त के सामने कराया गया है। वास्तव में "वंग-चूलिया" यह नाम ही कल्पित है। "नन्दी-सूत्र" में दी गई आगमों की नामावली में "अंग-चूलिया, वग्ग-चूलिया, विवाह-चूलिया" इत्यादि अध्ययनों के नाम मिलते हैं, परन्तु "वंग-चूलिया" अथवा "वंक-चूलिका" यह नाम कहीं भी नहीं मिलता। मालूम होता है कि विक्रमीय सत्रहवीं शती के अन्त में लुकागच्छ के जिन बाईस साधुओं ने मुंहपत्ति बांधी और मलीन वस्त्र धारण-द्वारा लुकागच्छ का पुनरुद्धार किया था, उन्हीं क्रियोद्धारक बाईस पुरुषों को लक्ष्य में रखकर यह कल्पित अध्ययन किमी जैन विद्वान् द्वारा रचा गया है। इसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003121
Book TitleNibandh Nichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1965
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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