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त्रिस्तुतिक मत-मीमांसा ।
अफसोस का विषय तो यह है कि 'जैनभिक्षु ' असली व्यक्ति कौन है इसका तो आपने निर्णय किया ही नहीं और झूठी भ्रमणा में पड़ के मुझ ही को कोरटा के लेख का लेखक 'जैनभिक्षु' मान लिया और मेरे पर ही पूर्वोक्त पुस्तक में असभ्यता व गालियों की दृष्टि कर दी। __ मैं वेधड़क कहता हूं कि जैनभिक्षु ' नामा लेखक मैं नहीं हूँ; तथापि यदि आपने अपनी अज्ञता से गेर कायदे से मेरे पर झूठे आक्षेप किये हैं उन का मैं बदला लेना चाहता हूँ और अवश्य ही लूंगा।
इस लिये तुम्हें इस नोटीस से वाकिफ करता हूं कि इस असत्य भ्रम से लिखी हुई पुस्तक का जल्दी योग्य सुधार कर लेवें और मुझे इत्तला देवें, वरना मैं इस किताब की योग्यतानुसार उत्तर लिखने की कोशिश करूंगा।
महाशयो ! 'जैनभिक्षु' ने राजेन्द्रमूरिजी के जो अनुचित कार्य लिखे हैं वे तो किस गिनती में हैं, मैं तो उन को पाव आनीभर भी नहीं मानता, उन के संपूर्ण अनुचित कार्यों का खजाना तो मेरे पास है, आज तक मैं इन को प्रगट करने से परहेज करता था, इस विचार से कि किसी के भी दुर्गुण प्रकट कर. उसकी हतक करने से क्या फायदा, परंतु अब पूर्वोक्त मेरा विचार स्थिर नहीं रह सकेगा।
बस आप की तर्फ से जो खुलासा हो जल्द पेश करें, फिर ऐसा न कहें कि हमें पहले इत्तला नहीं दी । फक्त ।
लि. मुनि कल्याणविजय.
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