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त्रिस्तुतिक-मत - मीमांसा ।
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कि तुम्हारे चार थुई के जो जो शास्त्र है ! तिन मे चार निकाय के सब देवता अत्रती अपच्चक्खानी हैं वांदने पूजने योग नहीं - ऐसा लिखा है ! तो तुम चार थुई वाले अपना ही शास्त्रवचन उत्थाप के चोथी थुई कह के तिन अत्रती देवताओं की वंदना पूजना क्यों करते हो ? ऐसा वे ढुंढक व तेरापंथी, आप को वा आप के पक्षियों को पूछेंगे ! तो आप क्या जवाब दोंगे ? "
बिलकुल गलत बात है, कोई भी चार धुई करने वाला चोथी थुई कहके अवती देवों की वंदना पूजना नहीं करता, तथापि लेखक कहते हैं ' करते हो ' सो यह इन का पूर्ण अज्ञान है । क्या लेखक बिलकुल अज्ञानी हैं ? उन को यह भी मालूम नहीं कि स्तुति नाम किस का है ? अगर कुछ भी संस्कृत विद्या में प्रवेश किया होता तो यह कहनेका साहस कदापि नहीं करते कि ' स्तुति ' शब्द का अर्थ वंदन पूजन है। खैर |
लेखक ! अब भी याद रखिये कि ' स्तुति ' शब्द का अर्थ वंदन पूजन नहीं किंतु ' स्तुति प्रशंसा, श्लाघा, वर्णवाद का है, भाषा में इस का पर्याय शब्द ' तारीफ ' या ' बखान है इस विषय में मैंने पहले ही बहुत कुछ लिख दिया है इस लिये यहां पर फिर विस्तार करना अच्छा नहीं ।
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लेखकों का यह भी लिखना असत्य है कि ' इन देवताओं का पूजन चार थुई के शास्त्रों में नहीं लिखा ' बराबर लिखा है, परंतु पक्षपात के काले चश्मे पहिने हुए मनुष्य इसे नहीं देखें तो इस में दोष किसका ? । लेखक महानुभाव पक्षपातरहित हो कर नीचे लिखे हुए शास्त्रपाठों को देखें कि जैनशास्त्रों में देवताओं की पूजा लिखी है या नहीं ? |
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